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(६३०) | बीजक कबीरदास । ताहि नकाहये पारखी, पाहनलखै जो कोइ ॥ नग नल या दिलसों लखे, रतनपारखी सोइ ॥२८४॥ जो कोई पाहनरूपी मनको देखै है अर्थात् जब भरम जाके मन बनो रहें। ताको पारखी न काहये औ जो कोई नर आपनो आत्मारूप जो है नग स्वस्वरूप सो आपने दिलमें रामनाममें देखै है अर्थात् मकार स्वरूप जो है आप नों स्वस्वरूप ताको रकार रूप नै हैं साहब तिनके समीप देखै सोई पारखी है जब नग मुन्दरी मे जड़ि जाय हैं तबहीं शोभा होयहै नहीं तो पाहने हैं ॥ २८४ सारीदुनियाँ विनशती, अपनी अपनी आग ॥ ऐसा जियरा नामिला, जासों राहये लागि ॥२८॥ सारी दुनियाँ अपनी अपनी आगिमें कहे कोई ब्रह्ममें लागिकै कोई नाना देवतनमें लागिकै कोई नाना मतनमें लागि बिशेषत बिनशि रहे है साहब को नहीं जानै हैं सो कबीरजी कहै हैं ऐसा जियरा कहे रामोपासक सन्त कई न मिला जास लागि रहे अर्थात् सत् सङ्ग करौं कहे जे साहब को नहीं जानें ते बिनशि जाय तामें प्रमाण । “यश्चरामनपश्येतयंचरामोनपश्यति ॥ निंदितः सर्वलोकेषु स्वात्माप्येनेविगर्हते ॥ २८५ ॥ सपने सोया मानवा, खोलि देखै जो नैन । जीव परा बहु लूटमें, ना कछु लेन न देन ॥२८६ जो मानुष अपनी अँऑखि खोलिकै देखै तो सब स्वप्नै है यह जीव बहुत लूटमें परचो है नाना मतनमें नाना उपासननमें लग्यो है साहब को नहीं जानै ताते न कछु लेन है न देन है याते या आयो कि इनमें बृथै लागे हैं मुक्ति काहूकी दई नहीं दैजायँहै या सब स्वप्न है तामें प्रमाण गोरख गौष्टीको कबीरजी को गोरख पूछे हैं । | कर्ताको स्वरूप कौन! अण्डका स्वरूप कौन! अण्ड पार बसै कौन?नादबिन्दुयोग कौन ? जीव ईश्वर भोग कौन ? भूमी अवतार कौन ? निराकार पार कौन ? चाप पुण्य करै कौन ? वेद औ बेदान्त कौन ? बाचा औ अवाचा कौन ? चंद्र सूर्य भास कौन ? पञ्चमें प्रपंच कौन ? ओह औ सोहं कौन ? स्वर्ग नरक