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(६२८) बीजक कबीरदास । गुरुके बताये साधनसीढ़ीमें चढ़ो फिर उतरि और और साधनमें लगो राम नामते बिमुख वैगयो ताको कालनरकमें घसीटिके डारिही देइगो कोई नहीं राखिसकैगो ॥ २७७ ॥ आगि जो लगी समुद्रमें; जरै सो कांद झारि ॥ पूरब पश्चिम पाण्डता, मुये बिचारि बिचारि ॥२७८॥ या संसार समुद्र में अज्ञानरूपी आग्न लगी है सोपूरंबपश्चिमके पंडित कहे उदय अस्तके पण्डित बिचारि बिचारिमरे परंतु अज्ञान रूपी अग्नि न बुतानि उपासना करिकै ज्ञानहू करिकै संसार समुद्र सूखि हूँ गयो परंतुवामूल अज्ञानरूप कांदौमें फैंसेजरे जायहैं ।। २७८ ॥ जो मोहिं जानै त्यहिमैं जानौलोक वेदका कहा न मानौं ॥ भूभुरघाम सवै घटमाहीं।सवकोउवसै शोककी छाहीं२७९॥ | गुरुमुख । | अज्ञानरूपी धामते अंतःकरणरूपी भूमि सबकै तपिरही है शोकरूपीजे नाना उपासना तिनकी छाया चाहै है परंतु वहीते और तप्त होयहै शीतल नहीं होइहै सो मोको तो जानतही नहीं हैं मैं वाको काहेको जानौं जो कोई मौको जानै तौ मैं वाको जानौं जानबही करौं लोकवेदतो कहतही है कि जो जाको है सो ताहूको जानै है सो या लोक वेदको कहा मानबहीकरौं अथवा कैसो पापी होइ जो मेरी शरण आवै तो मैं लोक वेदका कहा न मानें वाको शरणमें राख बई करौं वाके सम्पूर्ण पापमैंही छुड़ाय देउँ तामें प्रमाण ॥ * सकृदेव प्रपन्नाय तवास्मीति च या चते । अभयं सर्वभूतेभ्यो ददाम्येतद्रतम्मम ॥ २७९ ॥ जौन मिलासो गुरुमला, चेलामिला न कोई ॥ छइउलाखछानबे रमैनी, एकजीव परहोई ॥२८० ॥ श्रीकबीरजी कहै हैं कि एकजीवके उपदेशपर मैं छः लाखछानबे रमैनी युगयुग कह्यो पै मेरो कह्यो कोई न समझ्येा जो मिलो सो गुरुही मिलो चेला कोई न मिले जो मेरो कहो बूझै साहबको जानै संसारते छूटै छानबे रमैनी में अमाण ॥ सहसछानबे और छःलाखा ॥ युगपरमाण रमैनी भाखा॥२८०॥