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(६१८) बीजक कबीरदास । बाजनदेवायंत्ररी, कलिं कुकुरी मति छेर ॥ 'तुझे विरानी क्या परी, तू अपनी निबेर॥ २४२ ॥ जे और और बातें सबकहै हैं सो या शरीर यंत्रकहे बीणा है जैसा बनवैया बजावै है तैसोबाजै है ऐसे या शरीरमनके आधीन है जहां चलाबै तहां चलै है। कहूं बक बक करावै है कहूं ब्रह्ममें लगावै है नानामतनको सिद्धांतकैरै है सो वा यंत्रको बाजनदे मन बैकळकुकुरिया है वाको विष जो तेरे चढ़ेगो ते तुहूं बैकलद्वैमरि जाइगो अर्थात् चौरासी योनिमें पैरैगो से तोको बिरानी कह परी है हैं आपनी निवेरु जो तेरे यन्त्र बाजै है सुति कमलमें गुरु राम नाम ध्वनि उपदेश देईं हैं ताको ध्यान करु राम नाम शब्द सब शब्दते अलगैहै सोई साँचहै और सब मिथ्याहै सो हैं राम नाम ते सनेहकरु राम नामको सनेही मरत नहीं है तामें प्रमाण कबीरजीको ॥ *शुन्य मैरै अजपा मेरै अनहदहू मार जाय ॥ राम सनेही नाम मेरै, कह कबीर समुझाय ॥२४२५ । गावै कथै विचारें नाहीं, अन जानैको दोहा ॥ कहकबीरपारसपरशैबिन,ज्योंपाहनबिचलोहा ॥२४३॥ नाना पुराण नाना शास्त्र नाना मत गावे हैं औ उनको कथनी करै हैं और औरको समुझावै है परन्तु सबै शास्त्रको अर्थ साहबही हैं यह नहीं बिचारै हैं जैसे शुक चित्रकूटी राम कहि दिये न चित्रकूटको अर्थ न रामको अर्थ जानै है। आने में आन साजै है रसाभाव कर देयहै ऐसे सब शास्त्रको सिद्धांत जो जो साहव पारस रूप तिनको तो जानतही नहीं है कौनी रीति जीव लोहा कञ्चन होइ अर्थात् जब स्पर्श होय उनको जानि उनमें लगै भजन करै तब कन्च न होय ॥ २४३ ॥ प्रथमैं एक जो हौ किया,भयासो बारह बाट । • कसत कसैटी ना टिका, पीतर भया निराट ॥२४४॥ प्रथममें यह जीवको एक किया कहे एक राहमें लगायो कि मेरी भाक्त करै गो तौ संसारते छूट जायगो औ यह बारह बन भयो कहे आपने रूपी बाणको