यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

साखी। (६१५) स्वर्गको चलो गयो सो सर्बसु याकेा साहबैहै तिनके ज्ञानकी हानि द्वैगई पाण्डवनके दृष्टांतते उपासनाकाण्ड औ सूर्यके दृष्टांतते योगकाण्ड औ मनके अनुभवकै दृष्टांतते ज्ञानकाण्ड औ बिषय लहारिके दृष्टांतते कर्म काण्ड कह्यो । इनमें लगिकै नित्यबिहारी साकेत निवासी ने श्रीरामचंद्र तिन को जीब भूलिगये याहीते जीवनको जरा मरण नहीं छूटै है ॥ २३३ ॥ ? ऐसी गति संसारकी, ज्यों गाड़रकी ठाट ॥ एक पराजो गाड़में, सबै जात तेहिबाट ॥ २३४॥ या संसारकी ऐसी गति है जैसे गाड़रकी पॉति जो एक गाड़में गिरै तौ वाहीराह सिगरी गिरती जायहैं सो यो संसारको भेड़ियाधसान यही है एक जो कौनौ मत गैहै तौ सिगरे वा मतगहैं नीकनगा को बिचार न करें ॥२३४॥ वा मारगतो कठिनहै, तहँ मति कोई जाय ॥ जे गै ते बहुरे नहीं, कुशलकहै को आय ॥ २३५॥ वामार्गतो महाकठिन है जे साहबके पास जाय ते नहीं लौटै हैं उनको जनन मरण नहीं होय है इहां फिरि आईकै वा मार्गकी खबरिको कहै अर्थात् कुशल को बतावै रहिगे कुसंगी तिनको संग करिकै जीव नरक को चले जाय हैं साहबको न जाने ॥ २३५ ।। मारी मेरै कुसंगकी, केराके ढिग बेर ॥ वह हालै वह अँगचिरे, विधिने संगानबेर ॥२३६॥ केराके साथ बैर जामै है तो जैसे बैरके हाले केराको अंग फटिजाय है। वाके काँटाते तैसे कुसंगकीन्हे साहवको ज्ञान जातरहै है गुरुवन के वचनजे हैं। तेई काँटा हैं गुरुवालोग बैरहैं ॥ २३६ ।। केरा तबहिं न चेतिया, जव ढिगलागी बेरि ॥ अबके चेते क्या भया, कॉटन लीन्हो घेर ॥ २३७ ॥