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साखी। ( ६१३) विन रसरी गरसव बँध्यो, तामें बँधा अलेख ॥ दीन्हो दर्पण हाथमें, चशमविना क्यादेख॥२२॥ | गुरुमुख । बिनरसरी सबकेगर बाँधिलियो ऐसो जो है धोखाब्रह्म तामें अलेख ने जीव हैं ते बँधे हैं साहब कहै हैं तिनके हाथमें दर्पणदियो रामनाम बताई दियो सो चशम तो हैं नहीं कहे रामनामको ज्ञानतो है नहीं:आपनोरूप कैसे देखें कि मैं साहबको अंश मकार स्वरूपहैं। जब आपनोरूप न जान्यो तब मोको कहा जानै ॥ २२७ ।। समुझाये समुझे नहीं, परहथ आप विकाय॥ मैलैंचतह आपको, चला सो यमपुर जाय ॥ २२८॥ साहब कहै हैं कि मैं बहुत समझाऊहौं कि तें मेरो है मेरे पास आउ आनके हाथ कहां बिकान जायहै नानामतनमें लागै है ब्रह्ममें लागै है कि आपहीको मालिक मानै है सो मैं वहुत बँचौहौं आपनी ओर कि तें मेरे पास आउ यह यमपुरहीको चलोजाय ॥ २२८ ॥ लोहे केरी नावरी, पाहन गरुवा भार॥ शिरमें विषकी मोटरी,उतरन चाहे पार ॥२२९॥ या काया लोहेकी नाव संसारसमुद्र पारजाबेको है मन पाहन ताको गरुवाभार भरी है तार्पर विषयरूप बिकी मोटरी शिरपर लीन्हे है सो जीव कैसकै पारजाय ॥ २२९ ॥ कृष्णसमीपी पाण्डवा, गले हेवारहि जाय ॥ लोहाको पारसमलै, काई काहेक खाय ॥२३०॥ कृष्णसमीपके बसनवारे पाण्डवा ते हेवारमें गलैजाय सो कृष्णचन्द्रको जो जानते तो हेवारमें काहेको जाते काहेते जो पारसमें लोहा छुइ जातो है तामें कोई नहीं लगै है अर्थात सोनाद्वै नायहै साहबको जाननवारो पारसही है जायेहै