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(६०४) बीजक कबीरदास । | अरे औरे औरे मतनमें जो लगैहै तिनमें न लागु बिरानी आशा छोड़िदे हैं काहूके छुड़ाये न छूटैगो अपनी बहियांको बल करु तेरे उद्धार करिबको तेरी बहियां श्रीरामचन्द्रहैं सो आगे कहिआये हैं कि मोटे की बाँहले औ जाके आँगन में नदिया है सो का पिआसन मेरै है तेरा तो साहब ऐसो रक्षकबने है तें काहे साहब को भूलि औरे औरे मतनमें लगे है ॥ २०६ ॥ वहु बन्धनते बाँधिया, एक विचारा जीव ॥ का बल छूटै आपने, जो न छुड़ावै पीव ॥ २०७॥ कबीरजी कहै हैं कि ये बिचारे जीव ते बहुत बंधन ते बंध्यो है बहुत गरीबहैं सो जो हैं आपने बिचारते छूटा चाहै त। तें न छूटैगो बिना श्रीरामचन्द्रके छोड़ाये वोई तेरे पाउ हैं उनकी या प्रतिज्ञा है कि जो एकहू बार मोको जीव गोहररावै तौ मैं वाको छुड़ाय लेवहीं ताते हैं साहबकी शरण जाये जाते संसार ते छूट जाय जे साहबकी शरण जाय हैं ते कालहूके माथ पै लात दै चले जाय हैं तामें प्रमाण श्रीकबीरजीको ॥ काळके माथे पग ६री; सतगुरुके उपदेश । साहब अङ्क पसारकै, लैगे अपने देश ॥ १ ॥ गगन मॅडल दृग महलमें, द्वे घाटीके ईश ।। नाम लेत हंसा चले, काल नबावें शीश ॥ २ ॥ | औ जे राम नाम नहीं लेइ हैं ते नहीं मुक्त होय हैं तामें प्रमाण । यहि औतार चेते नहीं, पशु ज्यों पाली देह । रामनाम जान्यो नहीं, अन्त परा मुख खेह ॥ २०७॥ जिवमति मारहु बापुरा, सवका एकै प्राण ॥ हत्या कबहुँ न छूटि है, कोटि न सुनै पुराण ॥२८॥ जीव घात ना कीजिये, वहुरित वह काम्न ॥ तीरथ गये न बाचिहौ, कोटि हिरादे दान ।। २०९॥