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साखी । (६०१) मानुष तेरा गुण वड़ा, मास न आवै काज ॥ | हाड़ न होते आभरण, त्वचा न बाजन बाज ॥१९॥
- है मानुष ! जो हैं देहको अभिमांनं करै है सो नाहक करै है यह देह तरी कौने कामकी है तेरो मांस का नहीं आवै कोई नहीं खायहै हाड़नके आभर नहीं होते हैं त्वचाके बाजन नहीं बानते हैं सो तेरे एकगुण है या देहते साहब मिलते हैं सो मिलिबे की यतन करु ॥ १९५ ॥
जौलगि ढोला तवलागि बोला, तौलगि धनव्यवहार ॥ ढोलाफूटाधनगया, कोई न झांके द्वार ॥ १९६॥ सवकी उतपति धरणिमें, सब जीवन प्रतिपाल॥ धरती न जानै पशुण, ऐसा गुरूड्याल ॥ १९७॥ एकको अर्थ प्रकटै हैं एकको कहै हैं दुःखसुख नीकनागा सबकी उत्पत्ति ४.रताहीते है कहे शरीरहीते है जौने ज्ञानते सब जीवनको प्रतिपाल है ऐसे इनका तू जान अपने गुणको धरती जो शरीर ताको न मानु ते पांचो शरीर है, बाहिरे हैं ऐसे गुरु दयालुहैं साहब छुड़ावन वारे ताको जानु नैं अंशहै साहब अशी हैं ॥ १९.६ ॥ १९७ ॥ धरती जानतआपगुण, तौ कधी न होतअडोल ॥ तिलतिलहोतोगारुवा, खैरहत ठिौकीमोल ॥१९८॥ धरती जो शरीर ताके धरैया जो जीव धरती सो आपनो गुण नहीं जानत कि मोमें साहबकी प्राप्ति होयवो यही गुणह उत्पत्ति जो करौहौ सो साहबकी शक्तिते मेरीशक्ति नहीं है तौ कधी डोल न होतो अर्थात् मनादिकनको उत्पत्ति करि संसारी न होतो शुढे बन रहतो धरती जीव आपनो गुण कहा जानै जो आपने गुण साहब को प्राप्त होइबो जानते )ता तिल तिल में गरुई होतजातो कई तिलतिल वह ज्ञान बाढ़तौ औ ठीक जो है शुद्ध साहबके जनैया जीवात्मा ताके मोल है जाते कहे यही अमर है जातो जे साहब मेल किये रहै हैं शरीरहू