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(६००) बीजक कबीरदास । साहबको ज्ञान त रहित हैं जाइहै। सोतें ऐसो बिगरि गयो है कि जो अब दूध भयो चाहै तो आपने किये ते कौने हू भांति न होइ सकै है फिर जो होन चाहे तो होइ कैसे ताको या युक्ति है कि, जाको वा छाछ है ताहीको पियाई देइ तौ फिर वा दूध बनि जाइ है। तैसे जौने साहबको तू है तिनको जो रूप | गुरु बताइ देइ और तें ओई साहब श्रीरामचन्द्रमें लग जाई तौ पुनि तें शुद्ध जीव द्वै जाइ ॥ १९३ ॥ केत्यो मनावें पायँ पार, त्यो मानावें रोई ॥ हिन्दू पूजे देवता, तुरुक न काडुक होइ ॥ ३९४ ।। | श्रीकबीरज कहै हैं कि केतन्यो हिन्दू ते देवतनके पायँ परि मनावै हैं कि हमारी मुक्ति द्वैनाय औ नाना देवतनको पूजते हैं औ केतन्यो ने मुसल्मान तिनको हाल अवती है औ साहब के इश्कमें रोवते हैं औ मानते हैं कि साहब बेचून बेचिगून बेसुवा बेनिमून निराकारहैं सो जे देवतनको मनावतेहौ पँय परिकै तिनहीं की मुक्ति नहीं भई तिहारी मुक्ति कैसे होयगी देवता को सब सगुणहैं बिष्णु सतोगुण के ब्रह्मा रजोगुणके रुद्र तमोगुणके अभिमानी हैं। मुक्त नहीं भये तो तुमको कैसे मुक्त करेंगे सो जैन तीनों देवतनको अधिकार दिये हैं सबको मालिक श्रीरामचंद्र तिनको भजनकरु तब मुक्ति पावैगो तहां प्रमाण गोसाईजीको । “हरिहि हरिता विधिहिं विधिता शिवहि शिवता जिन दया । सो जानकी पति मधुर मूरति मोदमय मंगल भयो । और मुसल्मानौ ! तुम निराकार तौ मानौ हौ इश्क काकेपर करौ हौ सो जो साहबको रूप न मानौग तौ इश्क तुम्हारा इँटा ठहरि जायगा ताते बिचारौ तौ साहब रूप न होता तो मूसा पैगम्बर को छिगुनी कैसे देखावता ताते उसके रूपहैं परंतु मायाकृत पाञ्चभौतिक नहीं हैं दिव्यरूपहैं याते निराकारकहै हैं सगुण निर्गुणके परे जो साहब श्रीरामचंद्र ताको बन्दाहोउ आपनेको जो मालिक मानौगे तो बड़ी मार सहौगे तामें प्रमाण ॥ “स्वामी तो कोई नहीं स्वामी सिरजन हार ॥ स्वामी है जो बैठिहें घनी परैगी मार ॥१॥ ॐ साहब निर्गुण सगुणके परे हैं तामें प्रमाण ॥ सर्गुणकी सेवाकरौ निर्गुणका करुज्ञान ॥ निर्गुण सर्गुणके परे तहैं। हमारा जान ॥ १९४ ॥