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(९८२) | बीजक कबीरदास ।। मैं जौनजौने राहनमें वहसॉपिनि बैठी रहीं है तौन तौने राहनको काटिकै कहें । बरायकै औरे राह है चलो गयो ॥ १३९ ॥ सांप बीछिको मंत्र है, माहुर झारे जाय ॥ बिकट नारिके पाले परा, काटि करेजा खाय॥१४॥ साँपबीछीको बिषमंत्रन ते झारे जायहै औ वह विकट नारि जो माया है। ताकेपाळे जो परयो ताको करेजा काटिकै खायलेइ है अर्थात् साहबके ज्ञानादिक जे अंतःकरणमें हैं तिनकोखाय है सोई मायाको रूप कहै हैं ॥ १४० ॥ तामस केरे तीन गुण; भौंर लेइ तहँ वास ॥ एकै डारी तीन फल, भाँटा ऊख कपास ॥ १४१ ॥ आदितामस जो है अज्ञान मूल प्रकृति तामें रजोगुणी तमोगुणी सतोगुणी तीनफल लगे सो सतोगुणी ऊँखहै जो ऊँखचुह्यो तौ पहिले रस पान किया कहे यज्ञादिक कर्म किया स्वर्ग में जायकै अप्सरानके साथ सुखकियो जब | पुण्यक्षीणभयो तब फेरि संसारमें परे सो यहै हाथमें लग्ये। फिर चौरासीमें भटक नलग्यो । औ रजोगुणी कपास है कपासकोलियो कपरा विनायो पहिरयो ह्याँई फटिगयो तैसे रजोगुणी कर्म कियो तामें राजाभयो सुख भोगकियो दियों लियो बड़ो यश कियो फेरि फेरि मरिकै जैसो कम्र्मकियो तैसो भयोजाय । औ तमोगुणी कर्मभाँटाहै टोरयो तब कांटालग्यो हो जब खायो तब पुरुष शक्ति की हानि द्वैगई अखाद्य लिखे हैं बादशी त्रयोदशी इत्यादिक दिनमें जो खायों तो नरक को गयो ऐसे तमोगुणी कम्र्मते काहूको मारया तौ भरिगयो औ पापलग्यो राजाबॉधिकै शूली दियो मारो गयो दुःख पायो सो इहां दुःख पायों औ वहां नरकमें दुःखपायो ॥ १४१ ॥ मन मतंग गैयर हनै, मनसा भई सचान ॥ यंत्र मंत्र मानै नहीं, लागी उड़ि उड़ि खान॥ १४२॥ | मनरूपी जो हाथी है मतवार सो गैयर कहे आपने अरतेकहे हंठते गवा जो है जीव अर्थात् साहबको भूलिगयो जो है जीव अथवा गैयर कहे बड़ा जो है।