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(५८०) बीजक कबीरदास । बिग्रहते सर्वत्र साहिबहीहैं यह भावना करिकै सब जीवनते निर्वैररहु साधु मतकों यही सारांशहै सब साहबके शरीर तामें प्रमाण ॥ “खं वायुमग्निं सलिलंमहीञ्च ज्योतींषि सत्त्वानि दिशामादीन् । सरित्समुदाँश्च हरेःशरीरं यत्किञ्चभूतं प्रणमेदनन्यः । चित् जो है जीव सोऊ शरीरहै तामें प्रमाण ॥ “यश्चात्मनि तिष्ठ न्यमात्मानं वेद यस्य आत्मा शरीरम ॥ १३३ ॥ पक्षी पक्षी कारणे, सब जग रहा भुलान ॥ निरपझै है हरि भजे, तेई संत सुजान ॥ १३४॥ और तो सबमायैमें भुलानंहै जिनके कछू समुझहै ते आपने आपने मतको पक्ष कीन्हे हैं आनको पक्ष खण्डन कारि डाँरै हैं सो जे पक्षापक्षी छोड़िकै साहबको भेजे हैं तेई सुजान सन्तहैं ॥ १३४ ॥ माया त्यागे क्या भया, मान तजा नहिं जाय ॥ जेहि माने मुनिवर ठगे, मान सबनको खाय ॥१३॥ | सन्तलोग जो मायाको छोड़िउ दिये त कहा भयो मान बढ़ाई तो छोड़िये न कियो याही चाहै हैं कि, हमारो मान होय सो जौने मानमें मुनिवर ठगिगये हैं सोई सबको खाये लेइहै सो हम पूछे हैं कि जो तिहारो बड़ो मान भयो बडी बड़ाई भई कि फलाने के समान उपासनामें कोई नहीं है ज्ञानमें विद्यामें कोई नहीं है तौ यासों कहाभयो जाके निमित्त घरछोड्यो सोतो मिलबई न भयो तेहिते जो कोई साहबके मिलबे की संसार छूटिबेकी बात कहै तौ मानिलेई चाहै आपने मतको होइ चाहै बिराने मतको होइ काहेते कि साधुको मत यही है। कि संसारछूटै साहब मिलें औ मानै प्रतिष्ठा भये साधुकहावै या कौने शास्त्रमेंलिखा है तेहिते साधु वही है जो साहबको जानै ॥ १३५ ॥ घुघुची भरजो बोइया, उपज पसेरी आठ ॥ डेरा परा काल घर, सांझ सकारे बाठ॥ १३६॥ -- यहशरीररूपी क्षेत्रकैसो है कि जो बँधुची भर बोइजाय अर्थात् उटै तौ आठ पसेरी कहे मन उत्पत्ति होयहै कालके घरमें डेरा परयो है तेहिते यहशरीरको