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(५७८) बीजक कबीरदास । चित्त अनुसंधान औरे औरे ईश्वरनपर करने लग्यो, औ बुद्धि औरे औरे ईश्वर नपर निश्चय करनलागी ॐ अहंकार अहं ब्रह्मको बिचार करने लग्यो कि मैं ब्रह्म हौं । सो हे पण्डिते ! बिचार तौ करो ये चारो ने हैं ते चारोदमें शून्हीं गाड़ दिये बिचार रूप पनहीं उतारिकै कहे साहब को बिचार न करत भये साहब बिचारको पनहीं कहेते कह्या कि पनहीं पत्राण कहावै हैं पांय की रक्षा करै हैं सो बिचार रूप पनहीं उतारि डारचे ताते जैसे कांटा बेधि जाय है तैसे नाना मत नानाप्रकारके भ्रमबधि गये ॥ १२७ ॥ बलिहारी वहि दूधकी, जामें निकसै घीव ॥ आधी साखि कबीरकी, चारि वेदका जीव ॥ १२८॥ | वहदूध जो है चारो वेद अथवा और जे भक्तिशास्त्र तिनकी बलिहारी है। जामें घीव रामनाम निकसै है आधी साखी जो है कबीरकी रामनाम सो चारो वेदका जीव है काहेते जीव है कि चारों वेद याही ते निकसे हैं और आधी साखी रामनामै को कह्यो है तामें प्रमाण ॥ 4 रामनामले चरीबाणी ' । सबको आदि रामनामही है ॥ १२८ ॥ बलिहारी तिहि पुरुषकी, पर चित परखनहार ॥ साई दीन्ह्यो खांड़को, खारी बूझ गवाँर ॥ १२९॥ कबीरजी कहैं कि परचित कहे सबते परे चिद्रूप जो साहब ताको परखनहार जो अणुचित् पुरुष है ताकी बलिहारी है औ जे साई कहे बयाना ते खांडको दीन्ह्या कि वेदनमें श्रीरामचन्द्रको बूझै ताको छोड़ि खारी जोहैं नाना मत तिनको वेदन में बुझ हैं वोई मतनकी उपासना कैरै हैं ते गॅवार हैं खारी जो बहुत खाय तौ पेट काटि देइ है सो नाना मतनमें परिकै नाना दुःख सहै हैं ॥ १२९ ॥ विषके विरवा घर किया, रहा सर्पलपटाय॥ ताते जियरै डर भया, जागत रैनि विहाय॥ १३०॥ विषको बिरवा जोहै संसार तामें जीव घरकियो जामें कालरूपी सर्प लपटाय रह्यहै तेहिते जाके हृदय में डरभयो। जागि कै साहबको जान्यो ताको