यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

साखी । ( ९७७) तीनिलोक में चोरीहोत भई सबको सर्वस्वलैलियो सो ऐसों जो बिना मूड़को चोर निराकार ब्रह्म सो काहू को न चीन्हिपरयो अथवा बिनमूड़को चोर छिन्नमस्ता देवीके उपासक ते अपनेहूं के भावना करै हैं कि, हमारो मूड़ नहीं है काहेते कि ॥ “देवो भूत्वा देवं यजेत् ॥ यह लिखै है ते शाक्त काहूको नहीं चीन्हिपॅरै हैं मायामें डारिकै सब जीवको भरमाइ देइ हैं ॥ १२५ ॥ चक्की चलती देखि कै, नयनन आया रोइ ॥ दो पट भीतर आयकै, सावित गया न कोइ॥ १२६॥ . पुण्य औ पाप दूनों चकी हैं कहे चकरी हैं तामें द्वैत जो है हम हमार सो किल्ली है तैनै चकीके दूनों पटके भीतर आयकै साबित कोई नहीं गया है। पासिहीं गयो है जो कोई साहबको सर्वत्र चिदचित् रूपते देखे है साई बाचै है। तामें प्रमाण ॥ “पापपुण्य दुइ चकी कहिये बँटा द्वैत लगाया है । तेहि चकी तर सबै पीसिगे सुरनरमुनि न बचाया है। और प्रमाण सायर बीजककी।

  • चक्की चली राम की, सब जगपीसाझारि ॥ कह कबीर ते ऊबरे, जे किल्ली दियो उखारि ॥ १२६॥ चारि चोर चोरी चले, पग पनहींउतारि ॥ चारो दर शून्ही हनी, पण्डित कहहु बिचारि ॥१२७॥ चारि चोर जे हैं विश्व तैनस प्राज्ञ तुरीय ते चोरीकों चले अपनी अपनी पनहीं जो है बिचार ताको उतारिकै कहे छोड़िकै औ चोर चलै है तब पनहीं उतारकै चुपाजाय है तैसे येऊ चलै हैं सो विश्वाभिमान कर्मकाण्डकी थुन्हीं गाड़ी औ तैनस आभमान उपासनाकाण्डकी थुन्ही गाड़ी औ माज्ञाभिमान योगकी। थून्हीं गाड़ी औ प्रत्यगात्मा तुरीय अभिमानने ज्ञानकाण्डकी थुन्ही गाड़ी सो ताही को बिचार पण्डितजन करने लगे। अथवा चोर जो है मन बुद्धि चित् अहङ्कार ते बिचार रूप पनहींको उतारिकै चोरीको चले सो मन सङ्कल्प बिकल्पकी शून्हीं गाड़ी औ चित्त अनुसंधानकी शून्हीगाड़ी औ बुद्धि निश्चयकी शून्ही गाड़ी औ अहंकार अहं ब्रह्मकी शून्हीगाड़ी से ताहीको सब पण्डित बिचार करने लगे सों कहै हैं । मनतो सङ्कल्प बिकल्प करने लग्यो कि संसार कौनी भांति ते छूटै, औं

३७