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(५७६) बीजक कबीरदास । नाकरि जीव लूटमें परयो न कछु लेनहै न कछुदेनहै अर्थात् कछुवस्तु हाथनहीं लगे है ॥ १२३ । । चौ गोड़ाके देखतै, व्याधा भागा जाय ।। अचरज हो यक देखो, सन्तो मुवा कालको खाय१२४३३ चौगोड़ा जॉहै जीवात्मा ताके चारिगोड़ जे मन बुद्धि चित्त अहङ्कार इनहींते जीवचलैहै तौनेके देखतै कहे जब अपने स्वरूपको चीन्ह्यो कि मैं साहबकोअंश तबब्याचा जो है काल सो भागि जायेह निकट नहीं आवै है सो हेसन्तौ!.एकबड़ो अचरजहै जब जीवात्मा स्वरूपको जान्यो तबतो काल भागतही भर है औमुंवा कहे मन बुद्धि चित्त अहङ्कार जे चारो गोड़ तिनको औं पांचोशरीरछोड्यो तब कालखायही जाय है कहे कालकी भयनहीं रह जाय। हंसशीरमें बैठिकै साहबकेपास जायदै उहाँकालकीभय नहीं है तामें प्रमाण ।। ६ नयत्रशोकानजरानमृत्युत्तिर्नचोदेगऋतेकुतश्चित् । यत्तितोदःकृपयानिविदांदुरंतदुःखप्रभवानुदर्शनात् ॥ इतिभागवते ॥ यस्यब्रह्मचक्षत्रश्चउभेभवतओदनम्।। मृत्युर्यस्योपसेवेत क इत्यावेद यत्र सः ॥औ वा लोकमें कौनौ शोकनहीं हैं तामेंप्रमाण | धर्मदासजीको पद नामलीलाग्रंथको । १६ जहाँ पुरुष सतिमाव तहाँहंसनकीबासा । नहींयमनको नाम नहींह्वां तृष्णआसा ।। हर्षशोकवावरनहीं नहींलाभनंहिंहानं । हंसापरमअनन्दमें धरै पुरुषकोध्यान ॥ नहिंदेवी नहिंदेव नहीं ह्ववेदउचारा । नहिं तीरथ नहिंबर्त नहींषट्कम्र्मअचारा ॥ उतपतिपरल्यह्वांनहीं नहीं पुण्य नहिं पाप हंसापरम अनंदमें सुभिरैसत्गुरुप ।। नहिंसागर संसारनहीं ह्वां पवनहुँ पानी । नहिं धरती आकाश नहीं ह्वांऔर निशानी ।। चाँद सूर वा घरनहीं नहीं कर्म नहिं काल ।मगन होय नामै गहै छूट गये जंजाल ।। सुरति सनेही होइतासु यम निकट न आवै।परमतत्त्व पहिचानि सत्य साहब मनभावै॥ अजर अमर विनशै नहीं परम पुरुष परकास। केवल नामकबीरका गाय कहै धर्मदास तीनि लोक चोरी भई, सवका सरबस लीन्ह ॥ बिना मूड़का चोरवा, परी न काहू चीन्ह ॥ १२५॥ | -