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साखी । (५७५ ) | साहबक है हैं कि अमृतकी मोटरी जो रामनाम ताको तौ शिर ते उतारि धरयो कहे वाको तौ कोई बिचारकरै है नहीं जासों मैं कहौहौं कि एक मालिक महींहौं सो मोको दुइचार बतावै हैं कहे छःबतावै हैं अर्थात् पञ्चांगोपासना औछठौं ब्रह्म सबको मालिक जो मैंह ताको भूलिगये कोई देवीको कोई सूर्यको कोई गणेश को कोई विष्णुको कोई महादेवको मालिक है हैं ॥ १२० ॥ जाको मुनिवर तपकरें, वेद पढ़े गुण गाय ॥ सोई देव सिखापना, नहिं कोई पतिआय ॥ १२१ ।। जाके हेतु मुनिवर तपस्या करै हैं परन्तु नहींपावै हैं औजाको चारों वेदगावै हैं परन्तु गुणको पारनहीं पावै हैं तौनेन साहबको श्रीकबीरजी कहै हैं कि मैं सिखापनदैकै बताऊहौं कि उनहींके रामनामको जपौ तबहीं संसारते छूटौगे ताहू में मोको कोई नहीं पतिआयहै अथवा वाई जौन सिखापन दिया है कि मेरो नाम जपै तौ संसारते उद्धारद्वैजाय तनै मैं सिखापनदै बताऊँ हौं परन्तु पतिय नहीं है सो महामहै ॥ १२१ ॥* एक शब्द गुरुदेवका, ताको अनंत विचार ॥ थाके पण्डित सुनि जना, वेद न पावें पार ॥१२२॥ एक शब्द जो है रामनाम ताको अनन्त विचार है अर्थात् ताहीते वेद शास्त्र पुराण नानामत सबनिकसे हैं सो हमारे राममन्त्रार्थ में लिखो है तौने रामनामको अर्थ करतकरत पंडित मुनिवेद थकिगये पार न पाये अर्थात् अनन्तकोटि ब्रह्मांड में वेद शास्त्र सब याहीते निकसे हैं ये कैसे पारपाबैं॥ १२२॥ राउर को पिछवारकै, गावें चारो सेन ॥ जीव परा बहु लूटमें, ना कछु लेन न देन॥१२॥ राउर जो है साहबको घाम ताको पिछवारे कैदिये हैं चारोसेन जे चारोवद तिनके श्रुतिनको नानी उपासनामें नानामतमें लगायकै तिनहीं मतनको उपास
- अन्य प्रतियों में इस साखी के आगे यह साखी है सो यहां छोड़ दिया है। साखी एकते हुआ अनन्त,अनन्त एकैलै आया । परचे भई जब एकते, एके माहिं समाया’’ !!