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(५७४) बीजक कबीरदास । हैं सो मानिकै रामनाम कहिंकै संसार छोड़िदे फेरि जब यमके सोंटा लगेंगे तब न कहो कहि जायगो तामें प्रमाण॥“बहार न बनि है कहत कछु जब शिरलगिहै। चोट । अबहीं सब यकठौर है दूधकटोराटोट' ॥ ११७ ॥ एक कहीं तौ है नहीं, दोय कहौं तो गारि ।। है जैसा तैसा रहै, कहै कबीर विचार ॥ ११८ ॥ साहब कहै हैं कि हेनीव! जोमैं तोको एककहौं कि ब्रह्मई है सब तैहीं है तो वेदमें लिखे है किं॥“सत्यं ज्ञानमर्नतं ब्रह्म इति श्रुतिः ॥ब्रह्म तो ज्ञानमयहै सो जो ब्रह्म हो तो तौ मायामें बद्ध बँकै कैसे संसारी होतो औ जो दोय कहौं कि तें काहू ईश्वरकोदास है तौ गारी तोको परैहै काहेते कि तें तो मेरो अंशहै सो हेकबीरं कायाके बीर जीव बिचारकै देखु तो हैं सनातनको मेरो अंश है दासहै। और को नहीं है तामें प्रमाण ॥ “ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः ॥ औ मैं मालिक एकई दूजो नहीं है तामें प्रमाणचौरासीअंगकीसाखी ॥ “साई मेरा एक तू और न दूजा कोइ ॥ जो साहब दूजा कैहै, सो दुजा कुलको होइ ॥ ११८ ॥ अमृत केरी पूरिया, बहु विधि लीन्हे छोरि ॥ आप सरीखा जो मिलें,ताहि पिआऊ घोरि ॥११९॥ साहब कहै हैं कि अमृतपुरिया जो या रामनाम सो मैं बहुत भाँतिते छोरे लीन्हेहौं । और जो दोन्ही पाठहोय तौ यह रामनामकी पुरिया छोरि दीन्ह्यो है। कहे बहुतविधिते प्रकट करिदीन्ह्यो है कि यही संसारते छोड़ावनवारो है दूसरों नहीं है सो आपसरीखा जो मोको मिलै ऐसी भावना करतहोय कि मैं साहब को अंशहौं दासह सखाहौं दूसरेको नहींह ताको मैं रामनामकी पुरिया घोरिकै पिआइदेउँ कहे अर्थ समेत बताय देउँ औ पुरिया रामनामकी दैकै संसाररोगमिटायदेउँ औ रामनाम औषध है तामेंप्रमाण ॥ राम नाम एक औषधी सतगुरुं दिया बताय ॥ औषध खावै पथकरै, ताकी वेन जाय ॥ ११९ ॥ अमृत केरी मोटरी, शिरसे धरी उतारि ॥ जाहि कहीं मैं एक हौं, मोहिं कहै छै चारि ॥ १२० ॥