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                     बीजक कबीरदास ।

सो उन्हीं को आदिपुरुष औ बिराट् औ हिरण्यगर्भ कहै औ सहस्रशीर्षापुरुष कहै । औ ई समष्टिरूपजीव पुरुषहै सोवही समष्टिरूपते संकर्षण स्थूलरूप धारणकारकै प्रकट भयो । “सबको आकर्षण करिकै एक वैरहै ताकोसंकर्षणकही समष्टि जीव काहेते महाप्रलयमें जबजीव समाष्टजीवैमें रहे हैं औव्यंजन मकार पचीसौवर्णहैं सोजीव वाचकहै ताको अर्थ समष्टिजवरूप संकर्षण समुझ्यो औ रामनामकी जो मकार है सातौ बर्णातीतहै पचीसौ बर्ण नहीं है । रामनामके व्यंजन मकार में संकर्षणके अंशी जे हैं लक्ष्मण तिनको अर्थ न समुह्यो वहांपांच ब्रह्म कहि आये हैं सो इहां एकब्रह्मकी औ रामनामंके एकमात्राकी प्राकट्य भई ॥ ८ ॥

     दोहा-तेजअण्ड आचिन्त्यका, दीन्होसकलपसार ॥
       अण्डशिखापर बैठिकै, अधर दीप निरधार ॥९॥
अचिन्त्यजो है रामनाम ताकोतेज अंडजोहै रामनामको रेफ तौने रेफको अर्थलैकै सर्वत्र पसराइ दियो अर्थात रेफ अर्धमात्रा को अर्थ पराआद्याशक्ति ब्रह्मस्वरूपासमुझ्यो सोसब जगत्में पसराइदियो वहीमाया ते संपूर्ण जगत् होतं भयो सों वह पराआद्या शक्ति अंडजोहै ब्रह्मांड ताकी शिखापर बैठिकै अधरदीप कहे नीचे के ब्रह्मांडनको निरधारकहे प्रकाशकारकै निर्माण करत भई सो वहीको योगीलोग ब्रह्मांड में प्राण चढाइकै वही ब्रह्म ज्योति को ध्यानक हैं। औ.वही ज्योति में जीवको मिलावै । औ रेफ पद वाच्य ते श्री जानकी जी हैं। सो अर्थ न समुझ्यो इहां दूसरे ब्रह्मका प्राकट्य भई ॥ ६ ॥
         दोहा-ते अचिन्त्यके प्रेमते, उपज्यो अक्षर सार ॥
            चारिअशनिरमाइया, चारिवेदविस्तार॥ १० ॥ 
 तौन जो अचिन्त्यरामनाम ताकेमेमते कहे जब वामें प्रेमकियो कि याको समुझै कहा है तब रामनाममें जो है रकार तेहिमें जॉहै लघुअकार तौनेके शक्तिहू अक्षर सार जो है, रामनाम सो प्रणवरूपते प्रकटहोतभयो ताहीको शब्दब्रह्मरूप करिकै समुझतभये तौनेप्रणवकी चारि मात्रा है अकार उकार मकार बिंदुते एकएक मात्रा ते एकएक