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साखी। (६६३) सूंघते संतोषद्वैजाय । औ न ऐसे विषय जीवही पायो कि जन्में संतुष्ट हैजाय । अर्थात् विषयसुख जीव किया परन्तु अन्तमें निराशही हैजाय है सो प्रकटही है। वह सुख नहीं हिजायहै परन्तु मूढ़जीव नहीं छोड़े है ॥ ९० ॥ भंवर जाल बगु जाल है, बुड़े जीवअनेक॥ . कह कबीर ते वाचिहैं, जिनके हृदय बिवेक ॥९१॥ भ्रमर जाल जो हैं संसारसागरके विषयको अनेक फेरो सो कैसे हैं कि बकुलाने जीव हैं तिनके बोरिबेको जाळहैं, तामें बहुतजीव बूड़िगये । सो कबीरनी कहै हैं कि, जिनके हृदयमें विवेकहै असार बाणीको छोड़िकै सारजो रामनामरूपी जहाज ताको विवेक करि गहि लियो है तेई संसारसागर के पारजाइहैं ॥ ९१ ॥ तीनि लोक टीडी भई, उड़िया मनके साथ ॥ हरि जन हरि जाने बिना, परे कालके हाथ ॥१२॥ टींडीके जब पखना जामा तब जहैं जाईहै त मरिही जायेहै सो तीनिलोकके जीवनके मनरूपी पखनाजामे सो जहां जाय हैं तहां मरिही जाय सी हैं तो ये हरिकेजन हरिके अंश पै अपनो स्वामी औरक्षक हरिले हैं परमपुरुष श्रीरामचन्द्र सबके क्लेश हरनेवाले तिनके बिना जाने कालके हाथमें परे । मनके साथ उड़हैं सो मरतमें जहैं मननायेतनैरूप हैजाय तामेंप्रमाण । “अंते या मतिः सा गतिः॥ कबीरजी हूको प्रमाण॥“जाकी सुरति लागिहै जहँवां। कहैकबीर सो पहुँचै तहँवां' ॥ ९२ ॥ नाना रंग तरंग हैं, मन मकरन्द असूझ॥ कहै कबीर पुकारकै अकिल कला लै बूझ ॥९३॥ सङ्कल्प विकल्परूप नानारङ्गकी हैं तरंगै जामें ऐसो जो मन तामें काहेते तरंग उठे है कि, मकरन्द जो विषयरस ताको पान करिकै मतवालो द्वै गयो है सो जो मतवालो होय है सो औरको और कैरै चाहै । श्रीकबीरजी पुकारकै कहै हैं कि, अकिल जो बुद्धि तामें निश्चय कारकै कला जो है रेफ अर्धमात्रा ताको लैकै बूझ अर्थात वही अर्ध मात्रामें स्थितिकी विधि पाछे लिखि