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(५६२) बीजक कबीरदास । बतावै है रामनामही प्रथम प्रकटकरै है । औमूलाधार चक्रमें मूलजो रामनाम है मनवचनकपरे त्यहिते जो अनुसार भयो बाणीको ताहीको आभास परा बाणी प्रकट भई रेफ, ताहीते अकार जब जारचा तबरकार रूप हृदयमें पश्यन्ती प्रकट होइ है। औ फेरि जब एक अकार और आयो तब कण्ठ में मध्यमा प्रकट होइहै। पुनि जब बैखरीमें एक अकार और प्रकटभयो जब ओठलग्यो तब व्यंजन मकार भई तब वहै मन बचन के परे राम नाम सो आपने रूप को आभास बैखरी में प्रकटकरै है साई प्रथमभी कबीरजी लिख्यो कि ॥ * रामनाम है उचरीबाणी ॥ सो प्रथम याको प्रतिलोम क्रमते जप करत चारउ बाणी को स्वरूप जानै औ फेरि अनुलोम क्रमते रामनाम को उच्चारकरै घण्टा नाद वत् या भांतिते जो जपकरै तौ जानै कि,मन बचनके परे जो रामनाम ताको आभास जो रामनाम है सो प्रथम याहीको लै कै बाणी उचरी है । फेरि प्रणवादिक मन्त्र भये हैं यही घटघट बाणी को मूल हैं बूझ औ मन बचनते परे जे साहब हैं तिनको पायनाय सो या भांतिते बाणीको मूल जो तें घट्वटमें बिचारै तो ये सब बाणी ऊपरते नानामत नाना सिद्धांत कहै हैं याको मूल सिद्धांत हैं। साहिबै को बतावै है त्यहितें चारोवेद छःशास्त्र तात्पर्य करिकै श्रीरामचन्द्रही को बतावै हैं सो मेरे सर्व सिद्धांत ग्रन्थमें प्रसिद्ध है ॥ ८८ ॥ मूल गहेते काम है, तू मति भर्म भुलाय ॥ मनसा पर मन लहार है, वहि कतहूं मात जाय॥८९॥ | मन जो है सोई समुद्रहै मनसा कहें मनोरथ ताकी लहर में बहिँकै तें मतिना अर्थात् मनको संकल्प विकल्प छोड़ि दे । नाना बाणी नानामत में हैं न भूलिजाय, मूल जो रामनाम ताही को ग्रहणकरु, याही के गहेते तेरो उबार होइगो संसार छूटैगो ॥ ८९ ॥ भंवर विलम्बै वागमें, बहु फुलवनकी आश ।। | जीव विलम्बै विषयमें, अन्तहु चलै निराश ॥९०॥ जैसे मैंवर बागमें बहुत फूलनकी आय कारकै बिलॅबै है तैसे जीव संसारमें बहुत विषयकी आशैकै परयो । सो ऐसो फूल भ्रमर न पायो कि एकैफूल