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साखी । क्या गिरही कहे गृहस्थ औ क्या योमवारे कहे योगी ज्ञानी ते श्रीरामचन्द्र | को छोड़ छोड़ि और औरसाहब बिचारै हैं ते सब संसारीसमय बिचारते हैं परमा रथ कोई नहीं बिचारै हैं अंर्थात् संसारहीमेरहै हैं अर्थात् आपने इष्ट देवतन के लोकगये अथवा ब्रह्म में लीन भये ज्योतिमें लीनभये पुनि संसार में आयगये सो हे जीव ! तँ बिरानोहै साहबको है और काहूका नही है और मतनमें लागे हैं न छूटैगो । जौनजाको होयहै तैन ताहीके छुड़ाये छुटै है सोया मानुष शरीर पायकै अवसर मारो जायहै चेतुतौ हैं परमपुरुषश्री रामचन्द्रको है तिनहींकेछुड़ाये संसारते छूटैगो । औ संसारी देवतनको कहा परी है जो आपनेते छुड़ायकै संसारते छुड़ावैगे वे तौ और संसारही में डारेंगे ॥ ८६ ॥ संशय सब जग खंधिया, संशय सँधै न कोय ॥ संशय खंधै सो जना, जो शब्द् विवेकी होय ॥ ८७ ३ . संशय ज है मनको सङ्कल्प विकल्प सो सब जगको बँधाइ लिये है। कहे फॅदाय लियो है औ संशय जो है मनको सङ्कल्प विकल्प ताको कोई नहीं खंधिं सकैहै अर्थात् मनको सङ्कल्पविकल्प काहूको नहीं छूटे है जो साहबके शब्द रामनामको अर्थ बिचारत रहै हैं सोई संशयको सँधिसकै है अर्थात् ताहीके मनको सङ्कल्पविकल्प छुटै है, संशय छूटिबे को उपाय याहीमें है ॥ ८७ ॥ बोलना वहु भॉतिके, नयन कछु नहिं झूझ ॥ कहै कबीर विचारिकै, घट २ वाणी बूझ ॥ ८८॥ सो बोलना तो बहुत प्रकारके हैं कहे बहुत प्रकारके शब्दहैं बहुत प्रकारके मतहैं तिन मतनमें ज्ञान नयनते सार पदार्थ न जनन मरण छुड़ावे से कळू न सूझतभयो । सो श्रीकवारजी कहै हैं कि मैं बिचारिकै तौ देखु येने बाणी ते नानामत घटघटते निकसै हैं ते मनैके सङ्कल्प विकल्पते हैं, सो तौनेते संकल्प विकल्प मनको कैसे छूटैगो येतो मनबचनमें है । वह घटघटकी बाणी तो झूठको कहांते निकसीहै वह बाणीको मूल औ मनबचनके परे ऐसो जो रामनाम ताका बिचारकार जानैगो तबहीं छुटैगो । यह सब बाणीको मूल रेफ है । नाभि स्थानमें है तहाते बाणी उठै है सो जो मूल है सो तो साहबके।