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                 आदिमंगल ।। (९)
     दोहा—योग मया यकु कारनो, ऊजो अक्षर कीन्ह ॥
       या अविगति समरथकरी, ताहि गुप्त करि दीन्ह॥७॥
कारण रूप सुरति औ योगमाया गायत्री ये जे दुइइच्छा हैं ते वे पांचों ब्रझको करती भई सो सर्वत्र तो यह सुनै हैं कि ब्रह्मते सब होइ है औ यहांइनते ब्रह्म होइहै पांचौ, यह बड़ा आश्चर्य है । यह अबिंगति समर्थ जे परमपुरुष श्री रामचन्द्र हैं ते जब सुरति दियो है तब ये सब भये हैं । तिनको गुप्त कार दियो अर्थात् इनहीं पांचौ ब्रह्ममें औ जीवमें नामको अर्थ लगाय दिया है ते पचहुनको बतावैहै ॥ ७ ॥
      दोहा-श्वासा सोहं ऊपजे, कीन अमी बंधान ॥

| आठ अंश निरमाइया, चीन्हों संत सुजान ॥ ८॥


 यह सोहंशब्दू वह परम पुरुष जो है समष्टिजीव ताके श्वासाते उपज्यो सोई बतावैहै कि, “सोहं कहे सः अहं सो जौह अनुभवगम्यब्रह्मसो मैहौं' औ वही आदिपुरुष समष्टि जीव श्वासा ते अमीबंधान करतभयो कि इनकी मिठाई पाइकै लोग लोभायजायँ कौन अमी बंधान करत भयो वही श्वासाते आठअंश बनावतभये, कहे आठौ सिद्धि निकासतभये आठौ सिद्धिकेनाम ॥ “अणिमामहिमा चैव गरिमालघिमातथा । प्राप्तिः प्राकाम्यमीशित्वंवशित्वंचाष्टसिद्धयः ॥ १ अथवाआठअंश निरमाइया कहे आठ प्रधान ईश्वर प्रकटकियों तेई परम पुरुष समष्टि जीवके मंत्रीभये । तामेंप्रमाण महातंत्रमें महादेवको बाक्य ॥ “कालीचकौशिकीविष्णुः सूर्योहंगणनायकः ॥ ‘‘ब्रह्माचभैइक्योबई छबराइति कीर्तिताः १ यह प्रमाण शतानन्दभाष्य में विस्तार कैकैहै सो हेसंतसुजान तुम चीन्हत जाउ वह जोसार शब्द रामनामहै सो साहब समष्टि जीव पुरुषको बतायो सो सुन्यो औ साहबको न जान्यो धोखाब्रह्मरूप आपढ़ेकै वाको औरई जगनूप अर्थ निकासिलियो । औ वह जो सोहं शब्द प्रकटभयो सो संकर्षणहै। काहेते कि, सोहंशब्द जीवमें घटित होइहै कि, वह जीव जॉहै सोई बिचारकैरै हैं कि, सो जॉहै ब्रह्म सो अहंकहे महीं हौं एक और दूसरो कोई नहीं है ।