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साखी । ६ ६५३ }: अथवा हम जौनचाल वतावें हैं तैौनै चाल नहींचलते हो औ हमारो नामलेतेहो कि, हम कबीरपंथी हैं । सो लम्बी टोपी दीन्हे औ बिना छिद्रको चंदन दिये औ बहुत साखी शब्द कण्ठ करलिये हमारे फिरका न पावोगे मतको न पावोगे यमके धकाते न बचोगे । तामें प्रमाण॥“हमारा गाया गावैगा । अजगैबी धक्कापावैगा । मेराबूझायबूझेगा । सोतीनलोकमेंसूझेगा ॥ १॥ कबीर की साखी शब्दी पट्टिकै और बितण्डाबाद अनर्थ करनेलगे औ परमपुरुष श्रीरामचन्द्रको वेदशास्त्रको झूठकरनलगे आपने जीवै को सत्य करनलगे ते यमको धक्का पावै चाहैं । औ ने कबीरकी साखी बूझिकै औ परमपुरुष श्रीरामचंद्रको अंशहै जीव श्रीरामचंद्र याके रक्षक हैं। ऐसो जे बुझ्यो ते तीनलोकमें सूझबई करेंगे काहेते उनके रक्षक परमपुरुष श्रीरामचंद्र तो बनेई हैं सर्वत्रं रक्षा करिलेइहैं ॥ ६२ ॥ सबते सोचा है भला, जो सांचा दिल होई ॥ सांच बिना सुरव नाहि ना, कोटि करे जो कोइ ॥६॥ | जो अपना साँचादिलहोइ त सबते साँचे जेपरमपुरुष श्रीरामचंद्र औउनहीको अंशजीवहै औ उन्हींको मैं साँचो दासह यह मत सबते साँचहै सोईभलाहै। सो यह साँच मत बिना सुख काहूको नहीं है कोटिन उपायकरै । औ श्रीरामचंद्र सत्य हैं औजीव सत्यहै औ जीवको औ श्रीरामचद्रको भेदसत्यहै तामें प्रणाम ॥ “सत्यंभिदः सत्यंभिदः ॥ इत्यादि औ श्रीकबीरजीकी साखिहूको प्रमाण ॥ सत्य सत्य समरथ धनी सत्य को परकाश । सत्यलोक पहुँचावहू, छूटै भवकी आश ॥ ६३ ॥ साँचा सौदा कीजिये, अपने मन में जानि ॥ साँचे हीरा पाइये, झूठे मूरौ हानि ॥६४॥ आपने मनमें पारिखकै लीजिये तब साँचा सौदा कीजिये कहे ऐसी खानि खुदाइये जाते साँचे हीरा पाइये वही में कच्चे हीरा निकसै हैं तिनको छाड़िदी| जिये । ऐसे वेदपुराण खानिहैं तिनमें साहबको मत निकासि लीजिये यह साँचो सौदा कीजिये और मतनको त्यागि दीजिये काहेते झूठे मत मैं लागे आपनो स्वरूप जो है साहब को अन्त मूर ताकी हानि वैजायहै अर्थात् भलिजाय॥ ६४॥