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बीजकं कबीरदा । सुखे मग्नः दैत्याश्चहारणा हताः। तज्ज्योतिर्भेदनेसक्ता रसिका हारवेदन्नः औ । साहब के लोकमें में हैं तिनकी सर्वत्र गति है तामें प्रमाण । समृत्युन्त रति ससर्वेषु लोकेषुकामचारो भवति ।। इति श्रुतेः ॥ ६० । | दोहरा तो नव तन भया, पदहि न चीन्है कोई ॥ जिन यह शब्द बिबेकिया, क्षेत्र धनी है सोइ ॥ ६१ ॥ सेव्य सेवक भाव मान्यो साहबको जान्यो तब दोहरा नव तन भया कहे हंस शरीर पायो, परा भक्ति पायी तौने पदकहे साहबके लोक में प्रवेशकैरै है। सो वो लोकको नहींचीन्है । जो कहौ ब्रह्मरूप वैकै कैसे सेव्य सेवक भाव साहबते कियो तुम बनायकै कहौ हौ तौ श्रीकबीरजी कहै हैं जिन यहशब्द विवेकिया कहे जिन साहब यह बिबेकरि शब्द बतायो सोई क्षत्रधनी है। अर्थात् साहिबै माको बतायो है मैं बनायकै नहीं कहीं हैं तामें प्रमाण ॥ श्रीकधीजीको “ज्ञानी बेगि जाहु संसार । अमी शब्द करि जीव उबारा । पुरुष हुक्म जब जब मैं वा । तब तब जीवको आनिचेतावा ॥ गीतामेभी लिखाहै॥“ब्रह्मभूतः प्रसन्नात्मा न शोचति न कांक्षति । समस्सर्वेषु भूतेषुमद्भक्तिंलभतेपराम् ॥ भक्त्यामामभिजानाति यावान्यश्चास्मि तत्त्वतः । ततो मां तत्त्वतोज्ञात्वा विशते तदनन्तरम्' ।। ६१ ॥ कविरा जात पुकारिया, चढि चन्दनकी डार ॥ वाट लगाये ना लगै, फिरि का लेत हमार ॥ १२ ॥ श्री कबीरजी कहैं कि जब मैं चन्दनकी डोरमें चढिकै कहे वह ब्रह्मकै परे बैंकै साहबके लोकको जान लग्यों तब मैं पुकार औ अबहूं पुकारौं हौं सो पीछे लिखि आये हैं कि, बिरवा चन्दनते बासिजाइहै कछुचंदन नहीं है जाइहै ऐसे ब्रह्मज्ञान किये जीव शुद्ध है जाइहै कछु ब्रह्म न होइहै । सो ब्रह्म जा है चन्दन तौनेकी डार चर्टिकै अर्थात् ब्रह्मज्ञान करिकै शुद्ध वैकै वाको जानिकै पुकारयों हौं कि, साहबके होउ ब्रह्महीमें जनि अटकेरहौ । इतनाही नहीं है साहब ब्रह्मके आगे है सो सबको मैं बाट लगावों हैं कि, तुम साहब के होउ तुम हमारे लगाये उस राह में जो नहीं लगतेहो तो हमरो कहाजार्यहै ।