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(६४८ } बीजक कबीरदास । चलत चुलत थक गयो वह नगर नव कोश रह्यो । सो नवकोशमें एक कोश न चलि सक्यो, तौ दशौ कोश जहां साहबको मुकाम है तहां कैसे जायसकै । दशौ कोश दशौ मुकाम रेखतामें लिखिआये हैं । सो बीचै में याका डेरा परयो बीचही में रहिगयो ताते जन्म मरण होन लग्यो, तो कौन को दोषहै । साहबके पास भर तो पहुँचबोई न कियो । ॐ मुसल्माननके मतमें बहत्तर हजार परदाके ऊपर जब गयो तब नव परदा बाकी रहजाय हैं तनै कोश है दशयें में साहबहै ॥ ४९ ॥ झालि परे दिन ऑथये, अन्तर परिगै साँझ ॥ बहुत रसिकके लागते, वेश्या रहिगै वाँझ ॥२०॥ यहि साखी में अर्थ कोऊ यह कहै हैं कि, प्रपंच करतेकरते औ बिषय रस लेते लेते बुढाई आई । औ वेद शास्त्र पुराण नानाबाणी पढ़ते पढ़ते औ कर्म उपासना तपस्या योग बैराग्य करते करते थके। आखिर गुरुपद् पारिखकी प्राप्ति नहीं भई यकदिन मौत आइ पहुंची तब आँखिन पर झालिपरी कहे अँधियारीपरी । औ दिनकहिये ज्ञान सो गाफिली में डूब गया । औ हमारो अर्थ यहहै ॥ झालि पर कहे जब दिन अथवा कहे आयुर्दाय घटी तब गिरिपरे कहें तब बीमार हुये इन्द्रिय शिथिलभई तब अन्तःकरणमें अँधियार द्वैगयो कहे कुछ न सूझि परन लग्यो तब जैसे बहुत रसिकके संग ते बेश्या बांझ रहि जाई है तैसे गुरुवा लोगनकी नाना प्रकारकी बाणी को उपदेश सुनि सुनिकै शून्य द्वैगये । न ज्ञान भक्ति उत्पत्ति भई औ साहब न प्राप्त भये ॥ ५० ॥ मन तो कहै कब जाइये, चित्त कहै कब जाउँ ॥ । छा मासेके हीठते, आध कोश पर गाउँ ॥५१ । मन संकल्प बिकल्प करिकै आत्मा को स्वरूप खानै है कि आत्मा कैसों है ? औ चित्त स्मरण कैरै है कि आत्माको स्वरूप कैसा है ? सो छा मास जो हैं छयू शास्त्र तौनेमें हीठत कहे स्वरूपको खोजतई गये, पै वह गाउँ आत्माको स्वरूप मकार आध कोश में कहे अर्धनाम रकार ताके निकटही रह्यो पै खोजे न पायो । ५१ ॥