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साखी । (५४७ ) अनतही लगावैहै वेद शास्त्रका अर्थ कार काहेते न पायो किं बांटनहारोजो ब्रह्मा हैं सो लोभी रह्यो है कहे रजो गुणीहै सो बहुत चोराइकै कह्य परोक्ष कह्यो जाते कोई न पावै । औ जे जानतभये ब्रह्माको उपदेश ते गुरु ने ब्रह्माहैं तिनहते अधिकद्वैगये अर्थात् गुरुगुरुही रह्यो चेला खांड द्वैगये। अर्थात् गुरते मीठी खांड होइहै काहते ब्रह्माते अधिक द्वैगये कि, ब्रह्मा गुणको धारण किये हैं औ सगुण निर्गुणके परेकी बात जानै हैं ॥ ४६ ।। मलयागिरके बास्में, वृक्ष रहा सब गोइ । कहिबेको चंदन भया, मलयागिरि ना होइ॥४७॥ मलयागिरि चन्दनके वृक्षके बासमें सव बृक्ष गोइरहे कहे मलयागरिकै बास | सबमें ऑयगई, कछु मलयागिरि नहीं द्वैगई । ऐसे तिनको साहबको ज्ञानभयो तिनमें साहबको गुण आइगये शुद्धदै गये कछू साहब न द्वैगयो । जो कहो ब्रह्मातो चारवेद छःवेदांग छःशास्त्र जे सोरठहैं तिनते सबको उपदेश कियो ताको गुप्तार्थ और लेग काहे न समझ्यो एक साहबको जैनैयै काहेते जान्या ताने को अर्थ दूसरी साखीमें दिखावै हैं ॥ ४७ ॥ मलया गिरके बासमें, वेधा ढाक पलाश ॥ बेनाकवटून वेधिया, युगयुगरहियापास॥ १८ ॥ मलयागिरिके बासमें ढाक पलाश सब बेधि गये औ बेना जो है बांस सो युगयुग मलयागिरि के पासरहै है पै वामें बास न बेधत भई । अर्थात् और वृक्षन भीतर सार रह्यो तेहिते बास बेधिगई । औ बांसके भीतर सार न २ ताते बास न बेधत भई । अर्थात् और जे अज्ञानिउ रहे तिनके अन्तःकरणमें शून्य नहीं रह्यो सो जो कोई उपदेश किया तो सँच मानिकै समुझि लिये औ जिनके भीतर वह शून्य ब्रह्मधोखा घुस रह्यो ते और ऊपरते खण्डन करनलगे और और अर्थ वेदशास्त्र के बनाइ लियो ते न बासि गये कहे उनको साहबको रंग न लग्यो चारों युगमें वेदशास्त्र सब पढ़तई रहे ॥ ४८ ॥ चलते चलते पथका, नगर रहा नौ कोस ॥ बीचहिमें डेरा परयो, कहौ कौनको दोस ॥ ४९ ॥