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(५४६ ) बीजक कबीरदास । जीव बहुत दिन समाधि लगाईंकै शून्यमें हीठिया कहे भ्रमत भये कि, इमारो जन्म मरण छूटै । सो हजारन कल्प समाधि लगाये रहे जब समाधि उतरी तव पुनि जैसे के तैसे द्वैगये । अथवा हजारन बर्ष ब्रह्ममें लीनरहें जब सृष्टि भई तब पुनि संसाररूपी गाड़में परिकै पछितान लगे । पछिताइबो कहा है कि वही बासना लगीरही ताते पुनि नाना साधन करनलगे कि हमारो जन्म मरण छूटै ॥ ४४ ॥ विराभभनमाजिया, बहुविधि धरियाभेरव ॥ | साईके परिचयाविना, अन्तररहिगोरेख ॥ ४६॥ | कबीर जे हैं कायाके बार यहजीव सो बहुत भांतिके वेष धरत भयो योगी वैके योग करत भयो, ज्ञानी लैके ज्ञान करत भयो, भक्त ढुके भक्ति करत भयो कर्मकाण्डी वैके, कर्म करत भयो पै जिनको यहजीव अंश है ऐसे जे हैं सांई परमपुरुष श्रीरामचन्द्र तिनके बिना जाने याको भ्रम न भाजत भयो । जो मुक्त हू द्वै गयो आपने को ब्रह्महू मानतभयो तो मूळाज्ञानरेख याके रहीगई काहेते कि, यह जाको है ताकी तो जान्यो नहीं योग कियो, ज्ञान कियो भाते कियो, औ नाना कर्म कियो, ताते पुनि संसारहीमें परयो, कौन रक्षा करै, रक्षकको तो बिसराइ दियो ॥ ४५ ॥ विनडोड़े जग डॉड़िया, सोरठ परिया डांड॥ बांटन हारा लोभिया, गुरते मीठी खांड ॥४६॥ | यह संसार में जीव विना काहूके डांड़े डांड़िया कह सब डारि जाते भये ।। अर्थात् आपनेही कर्मते साहबको ज्ञान भूलिगये । औ सोरठ या देश बोली है । सोरठे फल देउ दशउ फळ देउ सो ये सोरठे उपाय बतायो चार वेद छःवेदांग छःशास्त्र, ई सोरठते ब्रह्मा साहब को उपदेश इनको किया, पै ये सब अपने अपने कर्ममें लगिगये । उनको वा सोरठकहे सोरठे जौनं ब्रह्मा उपाय बतायो तौन उनको डांड़परयो । डांड़ वह कहाँव है जौन बन कटिके मैदान वैजाय है। सो उनको चार वेद छःवेदांग छःशास्त्र ई ने सोरठ हैं ते डांड़परये कहे वामें साहब को खोज न पायो । साहबको बिचार उनको दिखाई न परयो । अनतही