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(५४४)। बीजक कबीरदास । आइहैं कहै हैं मैं फलानो भूतहौं आपनो रूप भूलिजाइहैं ऐसे जेई गुरुवालोगन की बाणी उपदेश में परै हैं ताहीके एकरूप ब्रह्म समाइ है यही कहै हैं कि, मैहीं ब्रह्म हौं है सब ब्रह्मही है एकरूप दूसरो पदार्थ नहीं है । सो श्रीकबीरज है हैं साउज जो जीवहै ताकी तबकी गति गुरुवाळोग कहै हैं तब तुम ब्रह्मही रहेही आपने अज्ञानते तुम जीवत्वको धारणकीन्हेही अबहूं जो ज्ञानकरो तो ब्रह्मही है जाहु या मानिकै उपदेश जीव भोकै है कि हमहीं ब्रह्महैं अर्थात् जैसे वा पण्डा भूतनहीं है जाईहै जीवहीरहै है ऐसे न ब्रह्म रहे हैं न बह्म होइगो । भोकैपदके शाक्त ते दूसरो दृष्टांत ध्वनित होइहै जैसे कृकुर कांचके मन्दिर में अपना प्रतिबिम्ब देखि भूकै है ऐसे अपने भ्रमते गुरुवनकी बाणीरूप ऐनामें आपनो रूप ब्रह्महीदेखै हैं भूकै हैं, यह नहींनानै हैं कि हम साहबके हैं या गुरुवाटोगनकी बाणा में ब्रह्मदेखापरे है तो हमारे मनहींको अनुभवहै ॥ ३९ ॥ गही टेक छोडै नहीं, चोंच जीभ जरिजाय ॥ मीठो काह अँगार है,ताहि चकोर चवायः॥ ४० ॥ ब्रह्मवादिन की टेक कैसी है जैसे चकोर को ओठ जीभ जैरै है परन्तु अँगारै को चाबै है ॥ ४० ॥* झिलमिल झगरा झूलते, बाकी छुटी न काहु ॥ गोरख अँटके कालपुर, कौन कहावै साहु ॥४१॥ झिलमिल झगरा कहे दशमुद्रा करिकै बंकनालते खिरकीकेराह लैजाइकै वहज्योति जो झिलमिलाइहै तामें आत्माको मिलाइ देइहै पुनि षट्चक्रते झिलिकै गैवगुफा में जो ब्रह्मज्योतिहै तामें मिलिकै औ झगराकरिके कहे कामक्रोधादिकनको दूरिकरिकै पुनि संसारमें झूलिपरै है अर्थात् जबसमाधि उतरि आई तबफेरि वही झगरामें झूलिपरे सो कर्मकीबाकी काहूकी नहीं छूटै है सब कर्म भोगकरै हैं । जो गोरखै कालपुरमें अँटके अर्थात् उनहोंको जो काल खाइलियो तो और दुसरो कौन शाहु कहावै है कौनकालते बच्यो है । जो बहुत जियो योगी
- और २ प्रतियों में ४१ वी साखी यह है । चकोर भरोसे चन्दके, निगले तप्त अँगार । कहै कबीर दाई नहीं; ऐसीवस्तु लगार ॥ ४१ ॥