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साखी। (९३३) शब्द विना श्रुति आँधरी, कहौ कहांको जाय ॥ द्वार न पावै शब्दको, फिरि फिर भटका खाय ॥ ४ ॥ श्रीकबीरजी कहे हैं कि, श्रुति जो है सो शब्द जो है रामनाम ताके बिना आंधरी है । काहेते कि, रकार मकार श्रुति की आंखी हैं ताके बिना कहांको जाय । सो शब्द जो रामनाम है तौनेको द्वार नहीं पावै अर्थात् अर्थ नहीं जानै । रामनाम तो साहबमुख अर्थमें मन बचनके परे पदार्थ बतावै है और यह श्रुति नेति नेति कहि बतावै है । याते रामनामक साहब मुख्छ अर्थ नहीं कहि सकै है । याते यामें पारकै जीव फिरि २ भटको खायहै । ज्ञान, भक्ति, बिज्ञान, योग; बतावै है फिीर फिरि नेति नेति कहि कहि देइहै, याते जीव भटकाखाइहै । उहां वस्तु कुछ नहीं पावै है जो रामनामको साहब मुख अर्थ जीव जानिकै लगाबै तौ सब श्रुति लाागे जायँ। औ सबके परे पदार्थ सो जानि जाहिं काहेते बिना आंखा कोई नहीं देखै । जोनी तरहते राम नामते सब श्रुति लागिजाय औ अनिर्वचनीय पदार्थ मालूम होयहै सो पीछे लिखि आये हैं ॥ ४॥ शब्द शब्द बहु अंतर हीमें, सार शब्द मथि लीजै ॥ कह कबीर जेहि सार शब्द नहि,धिग जीवन तेहि दीजै जहां जहां अन्तर तहां तहां बहुत शब्द देखे हैं। औ तुम रामनामको अनिबैचनीय है श्रुति की आँखी हैं या कही हौ सो कैसे होइगो ? एकशब्द .वोहू होइगो? सो या ऐसो नहींहै सार शब्द है जब सब शब्दनको मथै तब बा जानि पुरै । सो श्री कबीरजी कहैं हैं कि, जेहि को सार जो रामनाम सो नहीं मथिलियोहै, ताको जीवन संसार में धिगहै । “सारशब्द मतळीनै जो यह पाट होइ तौ सारशब्द रामनाम ताको मतिलेइ । और ने मति ते कुमतिहैं तेहिको छोड़िदे । रामनाम वर्णन सब श्रुति की आंखीं हैं तामें प्रमाण ॥ ६ आखर मधुर मनोहर दोऊ । वरण बिलोचन जैन जिय जोउ ॥ १ ॥ *मुक्तिस्त्रोकर्णपूरेमुनियवयः पक्षतीतीरभूमिः संसारापारसिंधोः कलिकलुषतमस्तोमसोमार्कविम्बे। उन्मलत्पुण्यपुजदुमललितलेलोचनेचश्रुतीनां कामंरामेतिवर्णीशमिहकलयन “ततेसजनानाम् ॥ ५ ॥