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(५३२) बीजक कबीरदास । तत्त्वको चाहो कि, मैं कौन तत्त्व यथार्थहौं तो शब्द जो रामनाम ताको परख लेउ, अनादि शब्द यही है । मेरे धाममें यह नाम मेरो सदा बना है। हैं जब आदि उत्पत्ति प्रकरण होइ है तब यही नाम लैकै यहीको अर्थ वेदशास्त्र औ सब जगत् निकासिकै बाणी जगत की उत्पत्ति केरै है रामनाम को अर्थ मोमें रूढ़ है से अर्थ बाणी गुप्तकै देइ है तीन अर्थ साधुनानै है कि, रकारजे हैं साहब तिनको अकार जो है आचार्य सतगुरु सो मकार जो है जीव ताको शरण करावै है सो तुम मकार तत्वहो ताको जाने चाहों तो शब्द जो है मेरो रामनाम ताके परखो । जो ककारके समीप मकार होइ तो वो मकार काम रूप सनै है है जो दकारके समीप मकार होइ तो दाम रूप सजेहैं इत्यादिक नाना शब्द सबै हैं तहां तौने रूप लैजाय है वतनी शुद्ध त नहीं रह जाय है । जब वह मकार रकार के समीप सनै है तबही शुद्ध ता होइ है । ऐसे तुम मेरे समीप सजौहौ सो मेरे पास आवो मोको जाने ते तुमहूं शुद्ध है जाउ । जैसे रकार के समीप मकार सदा रहै है तैसे तुमहूं सदाके मेरे समीप हो ताते मेरे समीप आवो औरे में न लगो। रकार के शरण मकार को अकार करावे तामें प्रमाण ॥ * रकारो रामरूपोयं मकारस्तस्यसे वकः । अकारश्रीमकारस्य रकारे योजनामता ॥ इति शम्भु संहितायाम् ॥२॥ शब्द हमारा आदिका, शब्दहि पैठा जीव ॥ फूल रहनकी टोकनी, घोरा खाया घीवं ॥३॥ | साहब क है हैं कि हमारा शब्द जो रामनाम सो आदि को है आदिहीतेयहि शब्द में जीव पैठा है सो शब्द रामनाम जीवके रहिबेको पात्र है; जैसे फूल के रहनकी टोकनी पात्र है । सो राम नामको लैकै निर्भय सुखपूर्वक बिचरै, कछू भय न लँगै । तैौने रामनामको सार जो अर्थ है सोई घी है ताको घोरे जे पशु हैं गुरुवा लोग अज्ञानी ते खाइलियो । अथवा पूर्व में छांछकों घोरा कहै हैं जामें सार नहीं है ऐसे जे हैं छांछ गुरुवा लोग ते साहब को यथार्थ ज्ञान जो घी ताको खाइलियो कहे वाको और और अर्थ करिकै नाना मतनमें लगाई दियो । जो रामनाम मौको बतावै है सो अर्थ भुलायदिया गुरु बा लोग बड़े घोर हैं येई संसारमें तोको डार दियो है ॥ २ ॥