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( ५२६) बीजक कबीरदास । तक धारकै संसारमें डारिदियो । सो तुम कैवल्य तनने महाकारणमें, महाकारणते कारणमें, कारणते सूक्ष्ममें, सूक्ष्मते स्थूल शरीर में गयो । सो नों अजहूं मनादिकनको त्यागकै मोको जानै तौ मैं तोको हंसशरीरदेउँ, तामें टिकि मेरे पास आवै । प्रथम साहब बरज्यो है ताको प्रमाण आगे बेलिमें लिखिआये हैं । जो कोई कहे हैं कि, “ हंसस्वरूपइते' माया तोधरिलेआई है। औ भूलि भई है सो बिना बिचारेकहै है । पारिखकारकैदेखो तो जो हंस स्वरूपईत माया धरि लेआवती; तौ पुनि जब हंसस्वरूप पावैगो तबहूँ न माया धरि लेऑवैगी ? काहेते कि एक बार तो धरिही लेआई । ताते हंस शरीरते माया नहीं धरिल्यवहै । जीव कैवल्य शरीरमें सदा स्थित रहै है तहां मनकी उत्पात्त होइहै । तब माया धरिल्यावहै । जीव संसारी वैजाइहै । पुनि जब महाप्रलय होइहै तब फेरि वही ब्रह्म प्रकाशमें जाइकै एकरूपते सब रही है तामेंप्रमाण ।। * पव्ययेसर्व एकीभवति। औसब वह उत्पत्ति होइहै तामेंप्रमाण ॥ सदेवसौम्येमग्रआसीत् एकमेवाद्वितीयम् । तदैक्षत एकोहं बहुस्याम्' इतिश्रुतेः॥ औ जब जीव संसारते मुक्त है जायेहै तब साहब हंस स्वरूप देइहैं, तामें स्थित कै साहब के पास जाइहै ताकेप्रमाण आगे लिखिआये हैं, साहबके पास जाय फेरि नहीं आवै । तामें प्रमाण‘नतद्भासयते सूर्योन शशांको न पावकः । यद्गत्वान निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम॥इतिगीतायाम् ॥ औ जबनीव कैवल्य शरीरमें है है सो सच्चिदानन्दरूप प्रकाशमें भरोरहै है, तहां जब मनको अंकुर वह चित् होइ है तब तुरीय अवस्था को स्मरणहोइ है, सो याको महाकारणशरीर है। औ जब वह सुख के स्मरणते बासना उपजी तब सुषुप्ति अवस्थामें मगनहोइहै। जागै है तब कहै है कि, आज खूबसोयो याकेा या कारण शरीर है । औ जब वह बासना संकल्प बिकल्परूप भयो या याको सूक्ष्म शरीरहै स्वप्न अवस्थाको सुख भयो । औ जब संकल्प विकल्पते नाना कर्मनके फलते पृथ्वी अपू तेज वायु आकाशादिकते स्थूल शरीर पावै है तहां जागृत अवस्था सों सुख होइहै तामें प्रमाण कबीर जी के ग्रन्थ पंचदेहकी निर्णयको ।