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(८२३) बीजक कबीरदास । रचना भई सो इनमें चारिउ खानिके परे जे जीव तिनकी हम चारिउ बानीते वेदशास्त्रादिकनते बिचारि खोजि देख्यो कोई थिर नहीं रहे हैं सबै झूलैहैं ।। सो हैं यहां को नहीं है तें तो बाहर को है जहां इहां की साजु उहां एक नहीं है ॥ ५ ॥ शशि सूर निशि दिन संधि औ तहँ तत्त्व पाँचों नाहिं। कालो अकालौ प्रलयनहं तहँ सन्तविरले जाहिं॥६॥ खण्डौ ब्रह्मण्डौ खोजि षट दरशन ये छूटे नाहिं।। यहसाधुसंग बिचारि देखौ जीउ निस्तारि जाहिं ॥७॥ न उहाँ सूर्य है, न चन्द्र है, न दिनहै, न राति है, न संध्या न पांच तत्वहैं, न काढहै, न अकाळहै, न उहां प्रलय है, ऐसी जगहमें कोई विरले संत जाइहैं ॥ ६ ॥ पुनि कैसो है जाको खण्ड जो शरीर ब्रह्माण्ड जो जगत् तामें वाको छइउ दर्शन वारे खोजि खोजिहारे परन्तु पाये नहीं न संसारते छूटे । सो ऐसे ढोका साधुले हैं तिनको सङ्गकरिकै विचारिकै देखे जाते जीव यहीं संसारते निस्तारि जाइ ॥ ७ ॥ तहँ केबिछुर बहु कल्प बीते परे भूमि भुलाय । अवसाधु संगति शोचिदेखौ वहुार उलटि सनाय॥८॥ तेहि झूलबे की भय नहीं जो संत होहिं सुजान।। कह कवीर सतसुकृत मिलै तौ फिर न झूलै आन॥६॥ सो ऐसे लोकते बिछुरे तोको केतन्यों कल्प व्यतीत भये हैं संसारमें भुला यकै परे आय सो तें अब साधु सङ्गतिकरि बिचारि कै रामनामको जानै जाते बहुरिकै वहैं समाय अर्थात् जहांते आये है त जाय । यो संसार हिंडोला छांडु जो कोई साहबके जाननवारे सुजान साधु तिनको या हिंडोलामें झूलबे की भयनहीं है।तिनसों श्री कबीरजी कहै हैं कि, जो याको सतसुकृतराम नाम मिले तो फिर आनि बार न झूलै। रामनाम को जपिबो जो है सोई सत्य सुकृतह वहीं बाङ् मनो गोवरातीत जे श्रीरामचन्द्र हैं । तिनके और जे सुकृत ते क्षयमानहैं औ रामनाम पास पहुँचावे है जहांते नहीं लौटे है तामें प्रमाण ॥ सप्तको