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(६१८) बीजक कबीरदास । बी कहे दुइ विद्या अविद्या रूपको, रहुली कहे रहनवालीं जो माया ताको । सो कबीरजी कहै हैं कि, विद्या विद्या दुहुन को न आदि है न अंत है अर्थात् विचार कीन्हे भ्रममात्रै है जीव छूटि मात्र जाइ है । सो बिरहुली जो माया ताके न जड़ है न पेड़ है न पल्लव है अर्थात विचार कीन्हे मिथ्या है ॥ १ १३ जब निशिवासर नहीं होत है तबहूं बिरहुली माया रही है जब पानी पवन्द नहीं रह्यः तबहू बिरहुली माया रही है औ ब्रह्मा सनकादिककी आदि बिरहुली है औ जौन योग अपार कथि गये हैं सोऊ बिरहुली है ॥ २ ॥ ३ ॥ मासअसाढ़हिशीतविरहुलीबोइनसातौबीजबिर हुली ॥४॥ नितगोडैनितासंचविरहुली।नितनवपल्लवपेड़बिरहुली॥॥ | जब प्रथम उत्पात्त भई है सोई आषाढमास है काहेते चौमास को आदि आषाढ है । तैसे युगनको आदि सतयुग है सो कैसा है शीतकहे शुद्ध सतोगुण है तौनेमें जीव को जो सातौ सुरति तेई हैं बीज तेके बोवत भये ते सब बिरहुलिन आइ सो मंगलमें लिखि आये हैं कि ॥ * सात सुरति सब मूल हैं । प्रलय इनहीं माहँ ' । सो जीव नितगड़े है गुरुवनते वोई कर्म पूर्छ है खोदि दि नित सच है कहे वोई कम्र्म करै है जाते बिरहुली कहे माया बढ्तै जाई है ॥४॥ ५ ॥ छिछिलबिरहुलीछिछिलबिरहुली।छिछिलरहलतिहुँलोकबिरहुली६ फूलएकभलफुललबिरहुलीफूलिरहलसंसारबिरहुली॥७॥ | कहूं विद्यारूपते छिछिली है बिरहुली माया; कहूं अविद्या रूपते छिछिली है बिरहुली माया । यही रीतिते तीनों लोकमें बिरहुली छिछिलरही है । सो यही माया बिरहुली में कहूं कर्मत्यागरूप एक फूल धोखा ब्रह्म फूल रह्यो है। ताही में सब संसार लगिकै फूलि रहे कहे आनन्द मानि लिये हैं ॥ ६ ।। ७ ।। तेफुलबन्दैभक्तिविरहुली । वांधिकैराउरजायविरहुली ॥८॥ तेफुललेहींसंतबिरहुली । डसिगोबेतलसांपबिरहुली ॥९॥