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(६१४) बीजक कबीरदास । बुधि वल तहां न पहुंचे हो रमैयाराम । खोज कहांत होय हो रमैयाराम ॥५॥ सुनि मन धीरज भयल हो रमैयाराम ।। अन वढि रहल लजाय हो रमैयाराम ॥ ६॥ फिरि पाछे जनि हेर हो रमैयाराम ।। काल बुत सब आय हो रमैयाराम ॥ ७ ॥ कह कबीर सुनौ संत हो रमैयाराम ।। मति ढिगही फैलाव हो रमैयाराम ॥ ८॥ भल सुस्मृतिजहडायहु हो रमैयाराम ।। धोरवा कियो विश्वास हो रमैयाराम ॥ १ ॥ साहब कहै हैं हे रामनामके रमनवारे जाव तुम भली तरहते स्मृतिमें जह डाइ गयो । स्मृतिको तात्पर्यार्थ जे मैं ताके न जान्यो काहेतेकि धोखा ब्रह्ममें विश्वास कीन्ह्यो ॥ १ ॥ सो तौ है बनसी कसि हो रमैयाराम । | शिर कै लियो विश्वास हो रमैयाराम ॥ २ ॥ सेतैर है कहे सो धोखाब्रह्म बंशीकी नाई है जो मछरीबंशीमें लागै है ताका प्राण छुटिजाईंहै, ऐसे तुहूं वामें लगैहै सो तेरो जीवत्व न रहैगो । अर्थात् तेरो स्वरूप भूल जाइगो मुरदाकी नाईटॅगो रहैगो। तौनधोखा ब्रह्ममें शिरकै बिश्वास के लिये है । अथवा जे गुरुवालोग तोको धोखा ब्रह्ममें बिश्वास कराइ देइहैं स्मतिन का अर्थ फेरिकै ते बनके सीगट हैं । उहाँ हैं वा जो ब्रह्महै सो औं आहे यही कहै हैं अथवा हुआहै हुआ है या कहै हैं कि तें लगा सो ब्रह्महुआ जैसे सीगटनकी बाणीमें अर्थ नहाहै ऐसे गुरुवा लोगनको बाणी में अर्थनहीं है हैं ब्रह्म कबहूँ न होइगो हैं रामनाममें रमनवारो है सो ताहीमें रमै तबहीं तेराबनैगो ॥ २ ॥