यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

(९०८) | बीजक कबीरदास । संसारतें छूटिबेकी संशय आइपरी है यमके घर लाठी खायहै पै मतनहीं है। है सो हे बौरा जीव ! मन कारकै समुझुतौ ॥ ७ ॥ ८ ॥ ज्यों सुवना नलिगी गह्यो मन बौराहो । ऐसा भर्म बिचारि समुझ मन वराहो ॥ ९॥ पढ़े गुने का कीजिये मन बौराहो । । अंत बिलैया खाय समुझ मन बौराहो ॥ १० ॥ जैसे नलिनीको सुवा भ्रमते गहै है कोऊ धेरै नहीं है ऐसे तुहूं आपने भ्रमते बँधो है सो साहबको जानै बिचार करै तौ छुटिही जायहै । जो सुवा पढ़े गुने बहुत भयो तौ का भयो बिलैया तो अंतमें खाय है सो ऐसतें बहुत पट्टि गुनि नाना मत कीन्हें परन्तु जौने में मीचते बचै सोतो करबही न किया।९।१०।। सूने घुरका पाहुना मन बौराहो।। ज्यों आवै त्यों जाइ समुझ मन बौराहो ॥ ११ ॥ न्हानेका तीरथ घना मन बौराहो।। पूजैको बहु देव समुझ मन बौराहो ॥ १२॥ बिन पानी नर बुड़िया मन बौराहो । टेकडुराम जहाज समुझ मन बौरहो ॥ १३ ॥ कह कबीर जग भर्मिया मन बौराहो। छोड़े हारको सेव समुझ मन बौराहो ॥ १४ ॥ सो औं शून्य धोखा ब्रह्ममें लगिकै सूना घरको पाहुना भयो जैसे आयो तैसे चल्यो मुक्ति न भई । सो जो मुक्ति न भई तौ का बहुत तीर्थ नहाये भयो का बहुत देव पूजे भयो तेंतो बिना पानी को जो संसार समुद्र तैनेन में बूड़िगयो । सो श्रीरामनामरूपी जहाज समुझिकै धरु । श्रीकबीरजी कहै हैं कि, हे मन करिकै बौराजीव! जगदमें भर्मिया कहे भ्रमत फिरै है हरि जे साहहैं तिनकी सेवाछोड़िकै सो हे मन बौरा अबहू समुझ ॥११॥१२॥१३॥१४॥ , इति चाचरि समाप्त ।