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बसंत । | (४९९) छूटे । या माया कैसी है काहूको तै सुखदहै काहू कैति उदास है । कहे उनको स्पर्शनहीं करिसकैहै । अर्थात् ने साहब को जानै तिनकी कैति उदासहै तिनहींके दास तुमहूं होउ तब उबार होइगो माया ब्रह्मजीवके परे श्रीरामचन्द्रही हैं तामें प्रमाण ॥ * राम एव परं ब्रह्म मि एव परंतपः। राम एव परंतत्त्वं श्रीरामो ब्रह्म तारकं ? इतिश्रुतेः ॥ ४ ॥ | इति आठवां बसन्त समाप्त ।। | अथ नव बसन्त ॥॥ ऐसो दुर्लभ जात शरीर । रामनाम भजु लागै तीर ॥ १ ॥ गये वेणु वलि गेहैं कंस । दुर्योधन गये बूड़े बंस ॥२॥ पृत्यु गयै पृथ्वी के राव । विक्रम गये रहे नहिंकाव ॥ ३॥ छौ चकवे मंडलीके झार। अजहूँ हो नर देखु विचार ॥४॥ हनुमत कश्यप जनकौ वार । ई सव रोके यमके धर ॥६॥ गोपिनँद भल कीन्हों योग । रावण मरिगो करते भोग॥६॥ जात देखु अस सबके जाम । कह कबीर भजु रामै नाम॥७॥ | चौरासी लाख योनिनमें भटकत भटकत यह शरीर पायो दुर्लभ सो वृथाही जाय है सो राम नामको भजु सेवा कर जाते तीर लगै । छौ चकवे कहिये १ बेणु २ बलि ३ कंस ४ दुर्योधन ५ पृथु ६ विक्रम ये छवो चक्रवर्ती भूमिमंडल के, ते शरीर छोड़िकै जातभयेसो हे नर अजहूं बिचारिकै तू देखु औ हनुमत कश्यप अदिति जनक कहे ब्रह्या, बार कहे सनकादिक ते ये अब रामनाम कहि यमको धाररोकेहैं । अयात् जे उनके मतमें जाय रामनाम कहे ते संसारते छूटही जायेहैं उनपै यमको बल नहीं चलैहै । औ गोपीचन्द योगीरहे रावण भोगीरह्यो पै रामनाम नहीं भने ते दोऊ मरिगये सो श्री कबीरजी कहै हैं कि याही भांति १ अन्य प्रतियों में वेणुके स्थानमें विष्ण लिखाहै । २ दुसरी प्रतियों में धारकी जगह द्वार लिखा है ।