________________
(४९२) बीजक कबीरदास । घरहीमें बाबुल बढ़ी रारि। अंग उठिउठि लागै चपलनारि१ - वह बड़ी एक जेहि पांच हाथातेहि पचहुनके पच्चीससाथ २॥ हे बाबू ! जीव तुम्हारे घटहीमें कहें शरीरहीमें रारि बढ़ींहै काहेते कि, हमेशा उठि उठि चपल नारि जो माया सो तेरे पीछू लगैहै॥१॥तामें वह एक सबते बड़ी काया नाके पांच हाथकहे पांच तत्त्वहैं पृथ्वी, अप, तेज, वायु, आकाश, पुनि एक एक तत्त्वनके साथ पांच पांच प्रकृतिहैं । सो असकैकै पच्चीस प्रकृति के हैहैं मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार चौथ, पांचों अन्तःकरण जामें चारयोरहेहैं । ये सब निराकारहैं । ऐसे आकाशके साथहैं। औपण अपान समान व्यान उदान ये कर्म करावैहैं एते वायुके साथहैं । औ आँखी कान नाक जिह्वा त्वचा येऊ बिषयको प्रकाश कनै हैं एते. अग्निके साथ हैं । औ शव्द स्पर्श रूप रस गंध सी येऊ पांचौ तृप्ति कर्ता हैं । एत जल पंचक हैं जलकेसाथहैं । औ हाथ पांव मुख गुदा लिंग येऊ आधारभूत हैं एते पृथ्वीकेसाथहैं । यही रीति पचहुन तत्त्वनके साथ पचीसौ प्रकृति हैं ॥ २ ॥ पच्चीस बतायें और और । वे और बतावें कई और ॥ ३॥ सो ये पच्चीसौ प्रकृति के हैं ते और और अपने विषयको बतावै हैं । से कहेहैं अंतःकरणको बिषय निर्विकल्प ! मन को विषय संकल्प विकल्प । चित्तको विपय बासना ! बुद्धि का विषय निश्चय । अहंकारको बिषय करतूति । प्राणको विषय चलब । अपानको विषय छोड़ब । सभानको विषय बैठछ । उदानको विषय उठब । व्यानको विषय पौढ़ब । कानको विषय सुनब । आँखाको विपय रुप । नाकको विषय सुंघबा । जीभको विषय बोलिबो। त्वचा को विषय स्पर्श । शब्दको विषय राग रस । स्पर्श को विषय कोमलत्व कठिनत्व शीतलत्व उष्णत्व । रूपकोबिषय सुंदरत्व । उसकोविषय स्वाद । गंधको विषय सुबास । इनको वे पचीसौ प्रकृतिबतादें हैं ईसब कई ठौर और बतावै हैं कहे चौरासीलक्षयोनि जीवको बतावै ॥ ३ ॥ सो अंतर मध्ये अन्तलेइझक झेलि झुलाउव जीव देइ ४॥