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( ४८८) बीजक कबीरदास । बुढ़ियाहँसिकहमैंनितहिवाशिमोहिंऐतिरुणिकहुकौनिनारि १ बुढ़िया जो मायाहै सो हँसकै कहै कि मैं नित्यही बारीहौं माया अनादि है याते बुढ़िहाकह्यो है तामें प्रमाण ॥ “अनामेकांलोहित इत्यादि । औ हँसिकै कह्यो याते या आयो कि साधनकरिकै छोटे छोटे या कहै हैं कि,हमको माया जीर्ण द्वैगई है अर्थात् अब छूट जाइहै मैं नित्यही बारीहौं सबके कार्य रूपते उत्पन्न होत रहौं हैं । ओ मोहिं अस तरुणि कौनि नारि है जो सब जीवनको संग करौंह औ बुढ़ाउँ कब नहीं हैं। ॥ १ ॥ दांत गये मोर पान खाताओं केश गयल मोर गैंग नहात॥२॥ औ दांत गये पान खात जो कह्यो सो पान जो है वेद ताको तात्पर्य जो जाने है यही खाब है । सो वेद तात्पर्यार्थ जानेते कामादिकजे मेरे दांतहैं जिनते जीव सज्जननको ज्ञानखाय लेइहै ते दांत मेरे जातर हे काम क्रोधादिक मायाके दांतहैं तामें प्रमाण ॥ रत्नयोग ग्रंथ कबीरजीको ॥ “काम क्रोध लोभ मोह माया । इन दांतनस सब जग खाया ।। औ साहबको जो कथा चरित्र रूप गंगा तामें जो नहाय है अर्थात् सुनै है सो कुमति रूप केश मेरे तिरहे हैं॥२॥ औनयनगयलमोरकजलदेत । अरुबैसगयलपरशुरुषलेत३ | साहबका ज्ञानरूप कज्जल जो कोई दियो तो मेरे नयन जो निरंजनहैं। सो जातरहे हैं । अर्थात् चैतन्यके योग करिकै माया देखे है औ । नयनको निरंजन कहै हैं । तामें प्रमाण कबीरजीको ॥ “नयन निरंजन जानि भरम में मतपैरै ॥ औ बैस जो मोर है सो परम पुरुष ने श्रीरामचन्द्र तिनको लेत अपने बशकै बैस मोर जात रहै है अर्थात् चारिउ शरीर मोर नहीं रहतेहै ॥ ३ ॥ औजान पुरुषवा मोर अहारामैं अन जानेको कर शृंगार ४ | औ जान पुरुषवा कहे जो या कहैहैं कि, हम ब्रह्मको जानिलियो, हमहीं ब्रह्म हैं । तेतो हमार अहारहीहैं आपने आत्मैको भूलिगये औ अजान जे हैं। तिनको शृंगारै किये हैं नाना विषर्दैकै लोभाय लेउहौं । अर्थात् जानै अनानको