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(४८६) बीजक कबीरदास । सों मैं बासननि कारकै बहुत लम्बा है रह्योहौं । कहे बासनान कारकै मैं संसारमें फैलिरह्योहैं । औ पाई वा कहाँवैहै जो ताना साफ करैहै सो या आत्माको साफ करिबो बहुत झीन है कहे जब कोई बिरले संत मिलें तब आत्मा शुद्ध होइ काहेते कि, यह सूतजीव पुरान कहे अनादि कालते तीन खूटा जो हैं सत १ रज २ तम ३ तामें बँधा है ॥ २ ॥ शर लागै सै तीनि साठि। तहँ कसनि बहत्तर लाग गठि३ खुर खुर खुर खुरचलै नारि।वह बैठि जोलाहिनि पलथि मारिष्ट पाई में झर लागैहै सो शरीरमें तीनिसै साठि हाड़हैं तेई शरहैं बहत्तार जे कोठा तिनमें बहत्तर हजार नसनकी गांठ एक एककोठनमें लाग तेई कसनी हैं ॥ ३ ॥ औ बिनतमें जौन बीच वै चलावै है सो नारि कहावै है से या शरीरमें नाड़ी जो है सो खुर खुर खुर खुर चलैहै । औ जोलाहिनि जो हैं। बुद्ध सो पलथी मारकै बैठी है अथव देहही में निश्चय करिकै बैठी है ॥ ४ ॥ सो करिगहमें दुइ चलहि गोड़ोऊपर नचनीनचिकरै कोड़ सो यह तरहको जो शरीर है सो कारगह है जहां जोलाहिनि बैठे है धमारि महलमें होयहै सोशरीरै महलहै सो कारगहमें जोलाहिनि दोऊ अंगूठा चलावै है ऊपर तानामें नचनी कोड़ करै है कहे नाचै है । इहां शरीररूपी करिगहमें बुद्धिरूपी जोलाहिनि बैठिकै कहूं शुभकर्म में निश्चय करै है कहूं अशुभ कर्ममें निश्चय करै है यही दोऊ अंगूठाको लचाइबोहै । औ वृत्तिबुद्धिकी कहूं शुभमें कहूं अशुभमें जायहै यही नचनी है सो नाचै है औ धमारि पक्षमें नाचत में नचनी को गोड़ चलैहै ऊपर कोड़ करै है कहे भावबतावै है ॥ ५ ॥ हैं पांच पचीसौ दशहु द्वार। सखी पांच तह रची धमार ॥६॥ . औ कषाय पांच जे हैं १ अविद्या २ अस्मिता ३ राग ४ देष ५ अभिनिवेश । औं पचासौ जे तत्त्व हैं १ जीव २ माया ३ महत्तत्त्व ४ अहंकार ५ शब्द ६ रूप ७ रस ८ गन्ध ९ स्पर्श दशौंइंद्रिय एकमन २० पंच भूत ई २५ औ ताहीमें दशौ बार ऐसे शरीर में पांच सखी ने हैं पंचप्राण ते धमारि