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( ४८२) बीजक कबीरदास । पनिया अंदर तेहि धरे न कोय।वह पवन गहेकश्मल न धोय विनु तरुवर जहँ फूलोअकासाशिव औ विरंचितहुँ लोहवास | औ बसंत ऋतुमें बृक्षनके अंदरनमें कोई पानी नहीं धरै है चन्द्र जो है सो अमृतको श्रवै है ताहीको गहे पवन वृक्षनके कश्मलन को धोयडारे है । औसाहबको लोक कैसी है कि, पनिया अंदर कहे वा रसरूपहै ताको कोई नहीं नानैहै । वही रसरूप लोकको स्मरण पवनहै ताके गहे कहे कियेते कश्मल ने पाप हैं ते धोय जात हैं । अथवा कामादि ने कश्मळहैं ते धोय जात हैं। ॥ ३ ॥ औ बसंत ऋतुमें जहां तरुवर नहीं हैं ऐसो जो आकाश सोऊ पुहुपन के परागन करके फूछ। देखो परै है । कैसी है आकाश जहां शिव बिरंचि | बस लैहि हैं अर्थात् बासकीन्हे हैं सुगंधित हैरह्यो है । औ साहबको लोककै साहै कि जेहिका प्रकाश चैतन्याकाश, बिना तरुवरै जगरूप फूलफूलैहै शिव बिरंचिआदिक बास लेहिहैं ॥ ४ ॥ सनकादिक भूले भबँर भोयतहँ लख चौरासी जीव जोय॥ बसंत ऋतुमें चौरासी लाख योनि जीवनकी कौन गनती । सनकादिक जे मुनि हैं तेऊ पुष्पमकरंद में भोयकै भवँरकी नाइ भूलि जाहिहैं । औ साहबको लोकप्रकाश ब्रह्म कैसाहै कि, सनक सनन्दन सनत्कुमार जाके भर में भोयकै कहे परिकै भूलै हैं चौरासीलाख योनि जीवनकी कौनगिनती है ॥ ५ ॥ तोहिंजासतगुरुसतकैलखावतुमतासुनछांहुचरणभाव६॥ वहअमरलोकफललगेचायायहकहकवीरवृझै सोखाय॥७॥ | सः श्रीकबीरजी कैसे हैं कि, ऐसा जो साहब को लोक जहां बरही मास वसंत बनो रहै है तौन जो सतगुरु कहे साहबके बतायदेनवारे तोको सत्यकैलखाया होय तो तुम ताके चरणको भाव न छोड़ौ । भाव यह है कि, वा लोक के मालिक जो साहब हैं तिनहूको बताय देईंगे । वह अमरलोक कैसा है कि, जहां चारिउ फल अर्थ धर्म काम मोक्ष आनंदै कै फल लगे । सो हे जीवो ! या बात जो कोई बुझैहे सोई खाय । साहब के धाम में बारह मास बसंतरहै है । तामें प्रमाण कबीरजाकी साखी ज्ञानसागरकी ॥ सदा बसंत होत