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कहा। (४७९) निदरेनहै हम पर विषम ६ गईहै काहूको ज्ञानकार साहबको मिलाय दियो काहूको ज्ञानहरि संसारी करिदियो । गेजो कह हैं सो साहबको पतिमानि वाको नाँदिमानि गारीदै कहै है कीन्ही तें कहा कि मष्टिते व्यष्टि करैवाली ऐसी मायाको आवत देखिकै हमार खेसमन साहब है तिनके सङ्ग सूती जाइ तें अपने भाईको पति बनाये हैं अर्थात् साहबको ज्ञान काहू जीवके न रहिगयो साहबको ज्ञान साहिबै को रहिगयो ॥ १ ॥ सो जौने धोखा ब्रह्मको मानि हम संसारी भयेहैं सो जो हमारो बापहै धोखोब्रह्म ताकें दोय मेहरियाहैं जीव चित् शक्ति कहे हैं कि एक मैं एक मोर जेठानी जौन साहब अज्ञानमूल प्रकृति धोखा ब्रह्मते जेठ समष्टिक रही है सो तब कारण रूपा है अब कार्य रूप भई अर्थात् चित्शक्ति जीव है है कि वही माया परिकै अहं ब्रह्मास्मि हम सब मानत भये जो कहो तुम या बात कसैकै जान्यो । तै जब हम रोल रसिकके जगमें कह जब हम रसिक जे साहब तिनके लोकमें आये तब हमें या बात जान्यो कि अहं ब्रह्मास्मि हम मानेन रहे औ संसारमें परिवेही कियो साहब के ज्ञान हमारे नहीं भयो सो साहब या लोकके मालिक ने तेई हैं जिनके जाने संसार छुटैहै ब्रह्मसाहब नहीं है ॥ २ ॥ सो पिता जो हमारो धोखा ब्रह्म जौनेके द्वारा हम व्यष्टिभये सो जब मिट्य तब मोर माई जो मूल प्रकृति सो सर कहे चिंता वशीकर बैराग रचिकै पिताके साथ वाहू सती वैगई अर्थात जब धोखाब्रह्म मिट्यो तब रामा . अज्ञानरूपी माया सोऊ छूटिगई साहबको ज्ञान द्वैगयो सो अपना मरी और जैतने नाता मानि राख्यौ लोग कुटुम्ब तिनहूँ को साथही लैजान्न भई अर्थात् अहंब्रह्म छोड़ि दियो जके नाते छोड़िदियो एक साहबको जान लियो उनहीं नाता मानलियो सो हे ज्ञानशक्ति ! जब तू था मोको जनायो तब मैं जान्यो ॥ ३ ॥ सो जबलौं श्वास है तबलौं कुशल है तू काहे बिषम है गई जबलौं श्वास है तबलौं इनके आइकै साहबको प्राप्ति करायकै इनको दुःख छुड़ाइदेउ श्वास निसरि गयेपर यम धरि लैजायंगे अनेक योनिमें भटकरत बागौ गे शरीर जाइगो । सो हे ज्ञान शक्ति ! तब तू न आय सकौगी तेहिते ई जीवन पर तुम आस सक्ती ही साहबको ज्ञान है सकैहैं ॥ ४ ॥ इति ग्यारवां कहरा समाप्त ।