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(४७० ) बीजक कबीरदास । त्रांत्रिक ३ चार्वाक ४ सो सौगतनामके आत्मा क्षणिक नाशमानमानै हैं जैसे घट, सोआस्तिक मतले विरुद्ध काहेते कि आस्तिक आत्माको नित्य मानै है ! १।। विज्ञानवादी पदार्थ मात्रका ज्ञान स्वरूप मानै है सो आस्तिक मतमें बाधक है। काहेत कि जो क्षणिक ज्ञानके बाहर दूसरे पदार्थ नहीं मानै है तौ ज्ञानाश्रय आत्मा केहितराते होइ ॥ २ ॥ ॐ सौत्रांत्रिक गुणरूप आत्मा मानै है कौन गुण सुख बिशेषगुण सो आस्तिक मतते बिरुद्ध है काहेते आस्तिक सुखरूप सुखाश्रय आत्माको मानै है ॥ ३ ॥ औ चार्वाक शरीरैको आत्मा मानै हो। काहेते प्रत्यक्षहै सो आस्तिक मतते बिरुद्ध काहेते शरीरते अभिन्न आत्माको माँनै है याही रीति उदयनाचार्य बौद्धाधिकार ग्रन्थमें बहुत नास्तिकनको खंडन कियो है ॥ ४ ॥ औ अछु हमहूं कहे हैं औ सौगत जो आत्माको क्षणिक नाशवान् मानेंगे औ चार्वाक जो शरीरको आत्मा मानेंगे तो जो क्षणिक नाश मान् आत्मा होत तौ भूत कैसे होत यात सौगत निराकरण भयो औ जो शरीरै आत्मा होयगा तौ मुर्दा कैसे होइगो शरीर काटिहू डोरै चैतन्य रहैगो औ विज्ञानबादी जो आत्माको ज्ञानस्वरूप माँनगो तौ अज्ञान कैसे होयगो औ सौत्रांत्रिक सुख गुणस्वरूप आत्मा मानै है तौ गुणते विना गुणी रहतई नहीं है सा गुणी काहै जो कहो अर्हको अथवा जिनको गुण मानै है जीवात्माको तौ गुण गुणी को समवाय है गुण गुणी को छोड़िके नहीं रहै है। सो जीव जो अज्ञानी भयो सो जाको गुणहैं जीव सोऊ अज्ञान भयो जो चावक कालैकै प्रत्यक्ष मानैहै गुण गुणी को नहीं मान है वेद शास्त्रको कहो मिथ्या मानौहौ सो ग्रहण शास्त्रमें लिखे है स परतही है सो वेदको कहो कैसे मिथ्या मानै तुम्हारे शास्त्र में लिखे है कि पृथ्वी नीचेको चली जाइहै सो ज पृथ्वी चली जाती तौ पाथर फेंकेते फेरि कैसे पृथ्वीमें मिलतो काहेसे कि पाथर हलुकहै बिलम्ब पूर्वक आवाचाही पृथ्वी गरूहै जल्दी नावा चाही ताते तुम्हारे ग्रन्थ झूठे हैं वेद शास्त्र सांचे हैं सो श्री रामचन्द्र बिना तुम मिथ्या जन्म गमाइ दिह्यो ॥ ४ ॥ इति छठवां कहरा समाप्त ।।