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कहरा ।। (४६७)। कि हे भैया ! रघुनाथजी को नाम जपौ औ शरण जाउ याहीमें उबारहै औरमें नहीं है टू बिधि शरणागत को लक्षण ॥ ** अनुकूलस्य सङ्कल्पः प्रतिकूलस्य वर्जनम् ॥ रक्षिष्यतीति विश्वासो गोप्नृत्त्ववरण तथा ॥ आत्मनिक्षेपकार्पण्ये पडूविधा शुरणागतिः ॥ ४ ॥ | इति पांचवां कहरा समाप्त । अथ छठवां कहरा ॥६॥ राम नाम बिनु राम नाम विनु मिथ्या जन्म गैवाईहो॥१॥ सेमर सेइ सुवा जो जहड़े ऊनपरे पछिताईहो । जैसे मदिप गांठि अथै दै घरहुकी अकिल गॅवाई हो ॥२॥ स्वादे उदर भरत धौं कैसे ओसे प्यास न जाईहो । द्रब्यक हीन कौन पुरषारथ मनहीं माहूँ तवाईहो ॥ ३॥ गांठी रतन मर्म नहिं जानेडु पारख लीन्ही छोरी हो । कह कबीर यह अवसर वीते रतनन मिलै बहोरी हो ॥४॥ राम नाम विनु राम नाम विनु मिथ्या जन्म गैवाई हो ॥१॥ | उपासक जे हैं ते पंचांगोपासना कारकै औ कापालिकादिक मतवारे देवतनके उपासना करिके नास्तिक मरबई मोक्ष मानिकै व्याकरणी शब्द ज्ञान करिकै ज्योतिषी कालज्ञान कारके सांख्य वाले प्रकृतिपुरुषज्ञान करिके पूर्व मीमांसावारे कर्मही कारकै नैयादिक दुःखध्वंसही कारकै औ कणाद वाले नौगुणध्वंसही कारकै औ शंकरवेदांतवाले ब्रह्मज्ञानही कारकै इत्यादिक मुक्त हो। मानै हैं परम पुरुष पर श्री रामचन्द्र तिनहीं बिना औ तिनके रामनाम बिना मिथ्य जन्म आँबाइ दियो ॥ १ ॥ सेमर सेइ सुवा जो जहड़े ऊनपरे पछिताई हो। जैसे मदिप गांठि अर्थदै घरहुकी अकिल गॅवाई हो ॥ २॥