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बीजक कबीरदास । ॐ ठांवहिं ठांव बझाऊ कहे मोहरूप शिकारी सो नाना बिषय की कथा औ नाना भूत यक्षादिक सेवनते सिद्धिकी प्राप्त तिनकी कथा औ नाना तो मसमत तिनकी कथा सो शब्दरूप बागुरि ठामहि ठांव लगाय राख्यो है। तामें श्रवणरूप कहार अरुझिकै डोला डारि देइह फिर संसार मग कैसो है ज्यों ज्यों संसार पथमें चलियतुहै त्यों त्यों दूरि रामपुर परतो जाय है। भैया रामपुरकी गैल नहीं है और राहहै फिर कैसा ह यामें वास नहीं है अर्थात् कल नहीं है है कर्म करतई जाइहै शांत वैकै कोई नहीं टिक्यो । ‘मारग अगम संग नहिं संबल नाम ग्रामकर भूलारे । तुलसिदास भव त्रास हरहु अब होहु म अनुकूलारे ॥ सो या प्रकार यह मार्ग है संसार साई पृथ्वी है। तामें विषयके हेतु नाना यतन करिबो अरु राजस तामस शास्त्रमार्ग तदनुसार कर्म करिबो सोई चलिबो है ताकी गोसांईजी कैहै हैं कि अगमहै कहे चलिबे मुआफिक नहीं है औ नाम मार्गमें संतनको संगहै ते रामपुरको विघ्न नाशिकै पहुंचाइ देईंहैं यहां कैसो है संगनहिं संबल कहे सम्यक् है बल जेहिके ऐसे संत सङ्गमें नहीं है अथवा नानामार्ग में तो सात्विक श्रद्धा कलेवा मिलै है या मार्गमें श्रद्धारूप कलेवा नहीं मिलैहै सो गोसाईजी अपनी रामायण में लिख्या है में श्रद्धा संबल रहित इत्यादिक औ जा गाउंको तुमको जाना है ताके नामही भूलि:गयो है भूला जो कह्यो सो गर्भ में सुधि होइ है फिर भूलि जायदै याते भूला कह्यो है अथवा व नाम ग्राम कर भूलाहै नाना देवतन कों नाम लेइहै औ तिनहीं के धाम जाइबेकी इच्छा कैरै है सो तेरो ते नामनते भव बन्धना छूटै है न ते धामनमें गये तेरो जनन मरण त्रास छूटैगो सो अब गोसाईंनी कतैहैं कि हे भैया ! अब अपने अपने जीवन पै दाया करि संसारकी त्रास हरो अब काहेते कच्चो कि अनेक जन्म भटाकि के अनेक शरीर पाईंकै मनुष्यको शरीर पायो है। सो अबहूं नाम मार्ग चलौ याते अब कह्यो है औ होहुं राम अनुकूला जो कह्या सो उपक्रममें नाम मार्ग बतायो ताको चलिकै उपसंहार में होहु रीम अनुकूला कह्यो सो एक उपलक्षण है छः प्रकारकी शरणागती को सूचन कियो है उपक्रम में नाम मार्ग बतायो पसंहारमें शरणागती बताया सोई श्री गोसाईं जी कहहैं।