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कहा । (४६८.) कहे कुटिल कलंकी करम करके कहे बनाइकै हम सबको दीन्हो है औ ऐसों निबल डोलाहै । औ मंद मोलबिन जो कह्यो सो औरको मांस भोजनमें काम अवै है यह मानुष शरीरको मांस बेचबेहूते कोऊ नहीं लेइ याते मंद मोल कहे थोरहू मोल बिना सो ऐसो डोला में चढिकै हे भैया ! या संसार मार्ग में चलौगे तो कलंकी करम को दियोहै डोला तुमहूं को कलंक लागि ज़ाइगो । यह जर्जर डोला जो संसार मार्गमें टूटैगो तौ फॅसि जाउगे फिर न निकसौगे। जो नाम सड़क चलोगे तो या सड़क राम घाटही लगीहै डोला टूट्यो दिव्य रूप ते आंख मूंदेहू चले जाउगे अथवा दिव्य रूपते बिमान चढ़ि चले जाउगे कैसी है डोला सो कहे हैं ॥ “बिषम कहार मार मद माते चलहिं न पाय बटोरे रे । मंद बिलंद अभेरा दलकनि पाई दुख झक झोरेरे ॥ बिषम कहे कहार जेहिको पांचों इंद्रिय सो एकतो सम नहीं है दूसरे स्वभावहीते बिषमहैं तीसरे मार मदमाते हैं। सो मतवारे के पांय सम नहीं पैरै हैं चलत में पांय बगरि जाइ हैं पांय बगरिबे कहे रूप रस गंध स्पर्श शब्द इनमें जाय रेहैहै । फिर मार्ग कैसो है मंद कहे नीचहै बिलंद कहे ऊंचहै अर्थात् कहूँ अपमानते दीन है जाइहै अपनेको नीच मानै है कहूं मानते अपनेको बड़ो ऊंच मानहै औ कहूं अभेरा कहे धका लगिजायहै। धको कहा है कहूं पुत्र मरगयो भाई मरिगयो चोर चोराय लियो खो या लोकमें लोग कहें हैं कि हमको बड़ो धक्का लगोदलकनि कहाहै कि विषय सुख देत में अच्छी लगैहै जब वामॅररयो तब बिषय दलदल में फँसि जाय है औ पाई दुःख झकझोरे कहे डोलामें झकझोरा लँगैहै सो इंदीरूप कहार गिरें हैं कहूं उठे हैं ताते विकलताई झकझोरा का दुःख पाइतेहैं ॥ "कांट कुरायल पेटन लोटन ठांवहिं ठांव बझाऊरे । जस जस चलिय दूरि निज तस तस बासन भेटल काउरे ॥ कहीं कांटहैं कहे सुन्दर रूपहै सो नयनरूपी कहारनके छेदिजाय तब गिरि जाय हैं कहे आसक्त है जाय हैं औ कुराय सजल होइ है सो रस है तामें रसनारूप कहार बूडिजाय है औ लपेटन फूली लताहै तेई गन्धहैं तामें नासिकारूप कहार लपटिकै गिरि परै है लोटन लोकमें सर्पको कैहहैं सो स्पर्श है त्वचारूप कहारनको डसि डॉरै है कामिनीके एक अङ्ग छुवतमें सर्वांग कामबिष चढ़ जाय है याते स्पर्शको लोटन सर्प कह्यो है