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(४६४) बीजक कबीरदास । सरस मन जासू । साधुसभा बड़ आदर तासू ॥ सिद्ध विरक्त महामुनि योगी । नाम प्रसाद ब्रह्म सुखभोगी ॥ या ते यह कि राम बिना मुक्तहुनकी गति नहीं है अरु भाई जो कह्यो से जीवके नाते कहै हैं कि हम सब यकीहैं। अरु इहां एकवचन कहैं सो प्रति जीव सो पृथक् २ कहै हैं कि हे भैया या दुःखमार्ग त्यागि देउ यामें दुःख पावोगे ताते राम कहते चलो ॥ नाहिंतो भव बेगारमें, परिहौ पुनि छूटब अति कठिनाईरे ॥ नहीं तो भव जो संसार है ताके बेगारिमें परोगे बेगारि परिबो कहाहै जाते संसारते कबहूँ न उद्धार होइ ऐसे कर्म माया तुमको धारकै करावैगी जो शरीररूप डोलाको गुमान कियेहोहु कि डोला चढि बेगार न परेंगे तो घरनवारो समरथ है डोलामें चुढेहू धरि लेइगो तब कठिन है जायगो जैसे फिरङ्गी म्याना पालकिनवाले को बेगार पकरै है तब कोई कहै हैं कि येतो बड़े आदमी हैं इनको सड़क खोदाना चाहिये तब अंगरेजलोग कैहैं कि हमारे इहां दस्तूरहै म्याना चढेनाइ वही में फरुहा कुदारी धरेजाइ सो पालकिउ चढे बेगारि धारि जाइ है औ डोलहू तिहारो जर्जरहै सो है हैं ॥‘बांस पुरान साजु सब अटखट सरल तिकोन खटोछारे । महिं दिहलकार कुटिल करमर्चेद मंद मोल बिन डोलारे ॥ प्रारब्ध जो हैं सोई पुरान कॅस है काहे ते कि संचित तो प्रारब्ध भै है तेहिते महापुरानहै । औ सब साज अटखट कह्यो सो आठ औ षटकहे चौदह साज हैं शरीररूपी डोलाकी से कहेहैं “त्वचा, रुधिर, मांस, अस्थि, मेद, मज्जा, शुक्र, केश, रोम, नस, नख, दंत, मल, मूत्र, सो त्वचा डोलाको वोहारहै रुधिर वोहार को रंग औ मांस वोहारकी तुई है औ अस्थिडोलाको काठहै औ मेद मज्जा डोलाको तकिया बिछौनाहै औ नस रसरीहै औ नख लोहेकी पतुरी है औ दांत खीला है औ मलमूत्र लघुत है औ घुनको कीरा है काहेते कि कीरनहू में पानी होय है । अथवा साजु सब अटखट जो यह पाठ होइ तौ पुरजा पुरजा जो है है यही अर्थ है है सरल जो कह्यो सो सरोही कहे रोगनते ग्रसित है औ तिकोन खटोढा जो कह्यो डोलामें सो शरीर की तीन अवस्थाहैं जाग्रत् स्वप्न सुषुप्ति याहीमें परहै है सोई तिकोन खटोला है अथवा बालापन युवापन वृद्धापन ई तीनपुन तिकोन खटोलाहैं शरीर रूपी डोलामें सो ऐसो डोला कुटिल करमचंद