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कहरा । (४६३ ) या संसार असारको धंधा अन्तकाल कोइ नाहींहो । उपजत विनशत बार नलागै ज्यों वादकी छाहींहो॥३॥ | या संसार असार कह झूठहीको धंधाहै अंतकालमें कोई आपनो नहीं है। जोकहो कि हम जाबही न करेंगे बनेही रहूँगे तो शरीर के उपजत विनशत में वार नहीं लगैहै जैसे बादरकी छाहीं भई औ पुनि मिटिगई ॥ ३ ॥ नाता गोता कुल कुटुम्ब सव तिनकी कवनि वड़ाईहो । कह कवीर यक राम भजे विन बूड़ी सव चतुराईहो॥४॥ बड़े गोतके भये बड़े कुल के भये बड़ी बड़ी जातिके नात भये तिनको कौन बड़ाईंहै ये तो सब शरीरही के हैं जब तेरो शरीर छूट जायगो तब तेरो शरीरही कोई न छुवैगो ताते ये सब नात गोत जबभर शरीर बनोहे तवहीं भरेके हैं शरीर छूटे ये सब छूट जाइहैं इनकी कौन बड़ाई है। सो श्री कबीरजी कहै हैं कि, एक जे परमपुरुष पर श्रीरामचन्द्र तिनके रामनाम के भने कहे सेवा किये बिन सब चतुराई तिहारी बूड़ि जायगी नरकहीको जाउगो । जेजे आपनी २ कल्पना ते नाना उपासना कैलियेहो तिनते चाहोहो कि हमारी मुक्ति है जायगी ते एकहू काम न आवैगो तामें प्रमाण श्री गोसाईजी को पद ॥ * राम कहत चलु राम कहत चलु राम कहत चलु भाईरे।नाहिंतो भव बेगार में परिहौ पुनि छूटब अति कठिनाईरे । बाँस पुरान साजु सब अटपट सरल त्रिकोण खटोलारे । हमहिं दिहल कर कुटिल करमचँद मंद मोल विन डोला।बिषम कहारमार मद्माते चलें न पाय बटोरेरे । मंद वैलंद अभेरा दलकनि पाई दुख झकझारेरे । कांट कुराय लपेटन लोटन ठामहिं ठाम बझाऊरे । जस जस चलिये दूरि निज तस तस बांसन भेंट लकाऊरे । मारग अगम संग नहिं संबल नाम गामकर भूलारे । तुलसि दास भवआश हरहु अब होहु राम अनुकूलारे ।। १ ।। अर्थ-राम कहत चलु राम कहत चलु राम कहत चलु भाई रे॥ गोसांईजी जीवन को उपदेश करैहैं इहां राम कहतवलु तीन बारकह्यो सो मुक्त मुमुक्षु विषयी तीनों जीवन को कहैहैं सो गोसाईनी अपनी रामायण में कह्यादै चौ०॥ विषयी साधक सिद्ध सयाने । त्रिविध जीव जग वेद बखाने ॥ राम सनेह