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(४६२) बीजक कबीरदास । अथ पांचवां कहरा ॥५॥ राम नाम भजु राम नाम भजु चेति देखु मन माहींहो । लक्ष करोरि जोर धन गाड़े चले डोलावत बाहींहो ॥१॥ दाऊ दादा औ परपाजा उई गाड़े भुई भाँडैहो । अँधेरे भये हियाकी फूटी तिन काहे सब छोड़ेहो ॥ २॥ ई संसार असार को धन्धा अंतकाल कोइ नाहींहो । उपजत बिनशत वार न लागै ज्यों बादरकी छाहींहो ॥३॥ नाता गोता कुल कुटुम्ब सब तिनकी कवनि वड़ाईहो। कह कवीर यक राम भजे बिन बुड़ी सब चतुराईहो ॥४॥ राम नाम भजु राम नाम भजु चेति देखु मन माहींहो । लक्ष करोर जोरि धन गाडे चले डोलावत नाहींहो॥ श्री कबीरजी कहै हैं कि हे मूढ़ ! परमपुरुष श्री रामचन्द्रको रामनाम है ताको भनु भजु भन सेवायां धातुहै सो याही रामनामको सेवा करु । रामनाम मन बचनके परे है सो आगै लिाख आये हैं अपने मन में चेति कहे बिचारिकै देखें तो लाखन करोरिन धन जोरिकै गाड़ि ३ धरयो जब मरन लाग्यो यमदूत है जान लगे तब बाहीं डोलावत चलौहो कि वे धन हमारे नहीं हैं ।। १ ।। दाऊदादा है परपाजा उई गाड़े भुईं भांड्रहो।। अँधरै भये हियोकी फूटी तिनकाहे सब छहो ॥२॥ | जो कहा वा जन्म कब देख्योह तो तेरे दाऊ दादा औ परपाजा वे भुईं में केतौ भांड़े गाड़ि गाड़ि मरिगये हैं उनहीं के साथ कबै धन गयो है सो हैं आँधरे द्वैगये तेरे हियोकी फूट गई हैं जैसे सब धन छोड्रिकै वे चले गये हैं। धनको मालिक तुहीं भयो ऐसे तुहूं धन छोड़िकै चलो जायगो तेरो धन औरही को होयगो तेरे हाथ कछु न लँगैगो ॥ २ ॥