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कहरा। ( ४६१) ओढन मेरो रामनाम मैं रामहिंको वनिजारा हो । रामनामको करौं बनिजमैं हरि मोरा हटवारा हो ॥ १ ॥ श्री कबीरजी कहै हैं कि पांखडी लोग जे हैं ते है हैं हमारो ओढन रामनामही है अर्थात् राम नामही के ओढ़नते ठग लेहिहैं । परम तत्त्व जो रामनामहैं। तौनेको ठगिवेको ओदर बनाये हैं काहे न मारे परै ? कौन तरहते कि बड़े बड़े टीका दैलिय माला जपै हैं न रामनाम को तत्त्व जानैं न अर्थ जानैं न जपैकै विधि जानैं न नामापराध दश जानैं औ या कहै हैं कि हम रामनामको बनिज़ार हैं औ रामनामकी बनिन करैहैं औ हरि जे हैं तेई हमारे हटवारे हैं कहे दलालहैं अर्थात् हम उनहींके द्वारा सब रामनामका सौदा लेहिहैं उनकी प्रेरणाते हम मन्त्र देइ हैं जो वाके भागमें होयगो सो होयगो हमारो पैसा धेातीतो हाथको न जायगो । जो कोई कहै है कि शिष्य परीक्षा कै लेउ तो या कहै हैं कि कहांक बखेड़ा लगायो है हम मन्त्र दैदियो वह जो चाहै सो केरै मुक्त होइ जाइगो ॥ १ ॥ सहस नामको किये पसारा दिन दिन होत सवाईहो । कान तराजू सेर तिन पौवा डहकिन ढोल बजाईहो।।२॥ औ या कहै हैं कि एक नामके लीन्हेते सर्व कर्म छूट जाइहैं हम तो हजारन नाम लेइहैं कर्म कहां रहूँगे सब छूट जायेंगे हमारे सुकर्म दिन दिन सबाई बढ़ेगे। सो दोऊ गुरु चेलनको ऐसो हवाळहै चढ़नके कान जे हैं तेई फेरही तर जुवा है औ तीनपावका सेरहे अर्थात् त्रिगुणात्मक मन हैं सो मन बचन के परे जो रामनाम सो गुरुवालोग तौल दियो अर्थात् मन्त्र दियो । डहकिन ढोल बजा ई कहे चेला लोग चारिउ ओर कहि आये कि हम मन्त्र लिया है कै डहकाइ गये ढोल बजाइ ॥ २ ॥ सेर पसेरी पूरा करिले पासँघ कतहुं न जाईहो । कहै कबीर सुनहो संतो जोर चले जहडाईहो ॥३॥ गुरुवनके उपदेशते सेर जो है मन पसेरी जो है ब्रह्मज्ञान सो पूरो करीलै अर्थात् सर्वत्र ब्रह्मको पूर्णं मानै परंतु पसंघा जो मूलाज्ञान सो कतहुं न जायगो वाहीमें परिकै अन्तकाल में जहडायकै कहे डहकाय चले जायेंगे ।। ३ ।। इति चौथा कहरा समाप्त ।