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कहरा। (४५३) पेलना अक्षत पेलि चलु वैरे तीर तीर कहँ टोवहु हो। उथले रहौ परी जनि गहिरै मति हाथै कै खोवहु हो १० : सो कबीरजी कहैं कि,पेलना जो राम नाम सो अक्षत बनै है ताको संसार समुद्रमें पेलिकै हे जीव ! संसारसमुद्र उतरजा । तीर तीर कहे नाना मतनका का टोवत फिरै है उथले में रहौ अर्थात् साहब को ज्ञान कीन्हे रहौ । गहिर जो धोखा ब्रह्म कठिन तामें न जाउ । वहां गये तुम्हार हाथहुको जीवत्व सों जातरहैगो ताते तुम न खोवौ उथले कहे साहब के ज्ञान जानौ ॥ १० ॥ तरकै घाम उपरकै भूभुरि छांह कतहुँ नहिं पावहु हो । ऐसोजानि पसीजहु सीजहुकसन छतरियाछावहुहो३१ तरके घाम कहे नाना कर्म जे नीको नागा किया ताकी जो ताप संसारमें ऊपरकी भूभुरि कहे नरक में गये तो वहौं तपै है, स्वर्ग में गये तो गिरनकी भय बनी है, काहू को अधिक ऐश्वर्य देख्यो तो ईषा बनी रहेहै कि, ऐसों कर्मे हम न किये । ये दोऊ तापमें साहब को ज्ञान रूप छांह कतहूं नहीं पावैहै। ऐसो तुम जानतैहौ पै वही में पसीनौ है कहे श्रम करौ है पसीना चैलहै औ छीजौहौ साहबकी ज्ञान रूप छतरिया काहे नहीं छावहुहौ ॥ ११ ॥ जो कछु खेल कियो सो कीयो वहुरि खेल कस होई हो । सासु ननद दोउ देत उलाटनरहहु लाज मुख गोई हो १२ जो कछु खेल कियो कहे जो कछु कर्म कियो सोई भोग कियो । अथवा जौन खेल माया ब्रह्मको साथ करिकै कियो सोई फल भोग कियो । सो बिना राम नाम लीन्हे इनको छोड़कै फेर खेल कियो चाही मुक्तिवाळा सो कैसे होइगो । सासु जो है मूल प्रकृति औ ननदि जो है विद्या माया सो ये दूनों तुमको उद्धाटन कहे उलटिकै जवाब देईहै कि, बिद्या माया करिकै मुमुक्षुदै मुक्तिकी इच्छा करत रह्यो । सो अब हम तुमहाँका लपेटि लियो तुम हमको त्यागत रह्यो है अब नहीं छूटि सकौहौ । या जवाब सुनि तुम लाजिकै मुखगोई रहौहौ लाचार है छूट नहीं सकौहौ ॥ १२ ॥