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| (४३८) बीजक कबीरदास। होइ ते याअर्थ है। ‘ला इन्द्रको औ छेदनकोकहै हैं । सो हे जीव! जो यज्ञादिककार इन्द्रादिक देवतनके संतुष्टिके वास्ते पशुछेदन करौडौ सो वेद या तुतरेबात जनाई है । जेसे लारका रोटाका टोटकहैहै परन्तु माता तात्पर्य जानै है कि रोटिही मांगै है । ऐसेवेद जो यज्ञादिक कहै हैं सो दुष्कर्म छुड़ाइकै यज्ञादिक में लगायो । फेरिज्ञानदैकै येऊकर्म छुड़ाईंकै तात्पर्यते साहवको बतावै हैं । सो तुतर जो है वेद तौनेको अर्थ तब पावै जब वाके तात्पर्य को पावै सो आपतो तुतरहै वेदं परदा कैकै बात कहै है सब जीवनको ए कहे हैं कि, जीव औरको औरई कहै है मेरो तात्पर्य नहीं समझहै सो एकै खेत जो संसार है तामें दून निबहै हैं । अथवा साहबके इहां वेदनहीं पहुंच सकैहै न प्रकट वर्णन कर सकैहै तात्पर्यही करिकै है है जगत की कर्म याहीको प्रकट बर्णन करैहै । औजीवने ते जगतही में परे रहै हैं ने तात्पर्य जानैहैं तेई साहबके समीप पहुंचे हैं ताते वेदौ जीवौ एक खेत जो जगत है ताहीमों निर्बहै हैं जो जगत न रहै तो बद्ध विषयी मुमुक्षुई न रहिना, मुक्तभरि हिजायँ औ चारिउ वेद रकारमकार में रहजायँ । ल इन्द्र को लक्ष्मी को छेदन को के हैहैं तामें प्रमाण ॥ ‘ले इंदो लवनो लश्च ला च लक्ष्मीः प्रकीर्तिताः ॥२९॥ ववा वह वह कह सब कोई। वह वह कहे काज नहिं होई ॥ ववा कहै सुनौ रे भाई।स्वर्ग इताल कि खवर न पाई ३० | वकहिये भक्तको वा कहिये वायुका सो हेनीव! तें तो साहबको भक्तहै वायु की नाई जगदमें बहतफिरौहौ ! वहहै ईश्वर, वहहै ईश्वर या कहा सब कोई कहौहौ । सो वे नाना ईश्वरनके कहे कान कहे मुक्ति न होइहै । सोहे वा कहनेवारे भाई ! सुनते जाउ तुम स्वर्ग पातालकी खबर नहीं पाई अर्थात् सबके रखवार साहबको नहीं जानौ हौ तामें प्रमाण ॥ ६ स्वर्गपतालभूमिलौंबारी । एकै रामसकल रखवारी ?? ॥ वा सात्वतको औवायुको कहै हैं तामें प्रमाण ॥ * सात्वतेवरुणे वातेवैकारःसमुदाहृतः ॥ ३० ॥ शशा सरदेवै नहिं कोई। सरशीतलता एकै होई ॥ शहसुनौरेभाई। शून्यसमान चला जगजाई ॥३३॥ १-‘ल' इन्द्र और काटनेवाले को, ‘ला लक्ष्मीको कहते हैं। २-‘व' सत्वगुणी, वरुण और वायुको कहते हैं ।