यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

चौतीसी । (४३७) य कहिये त्यागकेा या कहिये प्राप्तको । सो हे जीव! त्यागते नामसंन्यासते प्राप्तने साहब होई हैं ते साहब जगत् में पूरिरहे हैं । जैन भरिपूरैकह्यो सो साहबको सौलभ्यगुण दिखायो न जानै ताको जगवते दूरिहै अर्थात् बाहर है । ते यया जे साहब ते कॅहै हैं कि, हे भाई ! सुंनो हमरे सेयेते कहे हमरेन सेदाते सबको जय करनेवाला जो काल ताहूते जयपावै औरी तरहतै कालते जय नहीं पावै है साहब त्यागहीते मिलें हैं तामें प्रमाण ॥ दोहा । “बिगरीजन्म अनेककी सुधरै अबहीं आज । होय रामको रामजपि तुलसी तनि कुसमाज । य त्यागको औ प्राप्त को कहै हैं तामें प्रमाण यमोयैः कीर्तितः शिष्टेय वायुरिति विश्रुतः । याने यातरि या त्यागेकथितः शब्दवेदिभिः ॥ २७ ॥ रा रारि रहा अरु झाई । राम कहे दुख दारिद् जाई ॥ ररा कहै सुनौ रे भाई। सत गुरु पूछिकै सेवहु आई ॥२८॥ र कहिये कामको स कहिये अग्निको । सो हे जीव तें कामाग्निमें अरुझि रहो है तामें जरो जाइहै यामें दुःख दारिद्र न जाइगो रामनाम कहेते दुःख दरि द्रनाइहै । सो हे भाई ! सुनो रराकहे रसरूप जे साहब तिनको ज्ञानाग्निते कर्मलायकै सत्गुरु जे साहबके जाननवारे तिनसों समुझिकै रामनामको सेवहु । रामनाम के सेवन की युक्ति बूझिकै रको काम अर्थ छोड़िकै र कामको औं अग्निको कहै हैं तामें प्रमाण ॥ “रच कामेऽनले सूर्ये रुश्च शब्दे प्रकीर्तितः ॥२८॥ लला तुतरे बात जनाई । ततुरे पावै परचे पाई ॥ अपना ततुर और को कहई। एकै खेत दुनो निरवहई॥२९॥ | ल कहीं इन्द्रको ला कही लक्ष्मीको । सो हे जीव ! तें इन्द्रकी नाई लक्ष्मी पाइकै तत्त्वकी बातें जनावैहै सो तत्त्व तब पावैगो जब साधुनते परच पावैगो । सो हे जीव ! “तत्त्वंराति गृहातीति तत्त्वरः अपना तत्त्व जेहैं यथार्थ साहब तिनको नहीं जानेहै और औरको ज्ञान सिखवै है सो एकखेत जोहै एकहृदय तेरो तामें दोनों निर्ब हैं अर्थात् का दोनों निर्बहैं हैं? नहीं निबै है हैं कि, तें अज्ञानी बनोरहे है। और को ज्ञानकथै है तौका और के ज्ञानलंगै है? नहीं लगैहै । जो तेंहूं ज्ञानीहोइहै तौ तेरो ज्ञानौ कथिबो औरको लँगै औ जो ततुरे पाठ १-‘य' यम, वायु, ‘या’ सवारी, नानेवाले और छोड़नेको कहतेहैं। २-२’ कामदेव, अग्नि और सूर्यको कहतेहैं । 'रु' शब्दकरनेमें होताहै।